अध्याय – 08
पाठकों ने शायद
अन्दाज़ लगा लिया है कि किरीला पेत्रोविच की बेटी, जिसके बारे में हमने
अभी तक केवल कुछ ही शब्द कहे हैं, हमारी कथा की नायिका है. जिस वक्त की हम बात कर
रहे हैं, उस वक्त उसकी उम्र सत्रह वर्ष की थी, और उसका सौन्दर्य
अपने पूरे निखार पर था. पिता उसे पागलपन की हद तक प्यार करते,
मगर बर्ताव अपने हमेशा के झक्कीपन से ही करते, कभी उसके
छोटे-से-छोटे शौक पूरा करने की कोशिश करते, तो कभी उसके साथ
गम्भीरता से, और कभी-कभी तो क्रूरता से व्यवहार करके उसे
डराते. उसके अपने प्रति प्रेम का तो उन्हें विश्वास था, मगर उसका विश्वास वह
कभी प्राप्त नहीं कर पाए. उसे उनसे अपने विचार और भावनाएँ छिपाने की आदत पड़ गई थी,
क्योंकि वह अन्दाज़ नहीं लगा पाती थी कि पिता की कैसी प्रतिक्रिया होगी. उसकी
कोई सहेलियाँ नहीं थीं, और वह एकान्त में ही पली-बढ़ी थी. पड़ोसियों की
पत्नियाँ और बेटियाँ किरीला पेत्रोविच के पास बिरले ही आतीं,
जिसकी बातों और मनोरंजन के आयोजनों में पुरुषों का ही सहभाग होता था,
स्त्रियों की उपस्थिति वांछित नहीं थी. हमारी सुन्दरी किरीला पेत्रोविच के
यहाँ आनन्दोत्सव में लीन मेहमानों के बीच कभी-कभार ही आती. अठारहवीं शताब्दी के
फ्रान्सीसी लेखकों की रचनाओं से अटी पड़ी विशाल लाइब्रेरी उसी की देखरेख में दे दी
गई थी. उसके पिता, जिन्होंने ‘सम्पूर्ण रसोईघर’
के अलावा कभी कुछ नहीं पढ़ा था, किताबों के चयन में उसका मार्गदर्शन न कर पाते
और माशा, स्वाभाविक ही था, कि हर प्रकार की रचनाएँ पढ़ने के बाद,
उपन्यासों पर आकर रुक गई थी. इस तरह उसने स्वयम् ही अपना लालन-पालन पूरा
किया, जो कभी मैडम मिमी द्वारा आरंभ किया गया था, और जिस पर किरीला
पेत्रोविच ने बहुत विश्वास किया था और मेहेरबानियाँ भी की थीं, और अपनी इस दोस्ती
और मेहेरबानी के परिणाम स्पष्ट रूप से नज़र आने पर उसे चुपके से दूसरी जागीर में
भेज दिया था. मैडम मिमी अपने पीछे बड़ी प्यारी याद छोड़ गई थी. वह एक भली लड़की थी और
किरीला पेत्रोविच पर अपने प्रभाव का उसने कभी भी फ़ायदा नहीं उठाया,
यही बात उसे अन्य प्रेमिकाओं से पृथक करती थी जिन्हें वह हर पल बदला करता था.
स्वयम् किरीला पेत्रोविच भी, लगता था, औरों की अपेक्षा उसे
अधिक प्यार करता था, और काली आँखोंवाला नौ वर्ष का शरारती बच्चा,
जिसके नाक-नक्श मैडम मिमी की याद दिलाते, उसी की देख-रेख में
बढ़ रहा था और सभी ने उसे उसके बेटे के रूप में मान्यता दे दी थी,
बावजूद इस तथ्य के कि किरीला पेत्रोविच से साम्य रखने वाले अनेक बालक नंगे
पैर उसकी खिड़कियों के सामने दौड़ा करते और बंधक कहलाते. अपने इस नन्हे साशा के लिए
किरीला पेत्रोविच ने मॉस्को से एक फ्रांसीसी शिक्षक बुलवाया था,
जो उन्हीं घटनाओं के दौरान पक्रोव्स्कोए पहुँचा था,
जिनका हमने वर्णन किया है.
यह शिक्षक किरीला
पेत्रोविच को उसके रंग-रूप एवम् स्पष्टवादिता के कारण पसन्द आ गया. उसने किरीला
पेत्रोविच को अपने प्रमाण-पत्र दिखाए और त्रोएकूरव के एक रिश्तेदार का लिखा पत्र
भी दिया, जिसके पास वह चार वर्षों तक ‘गवर्नर’ के रूप में काम कर
चुका था. किरीला पेत्रोविच ने यह सब बार-बार देखा. सिर्फ अपने
फ्रांसीसी की जवानी ही उसे पसन्द नहीं आई – इसलिए नहीं कि वह प्यारी-सी कमी
सहनशीलता और अनुभव के साथ मेल नहीं खाती थी, जो शिक्षक के अभागे
पेशे के लिए अत्यन्त आवश्यक है, बल्कि इसलिए कि उसके अपने कुछ सन्देह थे,
जिन्हें तुरन्त स्पष्ट कर देने का उसने निर्णय लिया. इसलिए उसने माशा को
बुलवाया (किरीला पेत्रोविच फ्रांसीसी में बात नहीं करता था,
और माशा उसके लिए दुभाषिए का काम कर देती थी).
“यहाँ आओ,
माशा, तुम इस महाशय को बताओ कि सब ठीक है, उसे रख लेता हूँ,
सिर्फ इस शर्त पर कि वह यहाँ मेरी लड़कियों पर डोरे डालने की हिम्मत न करे,
वर्ना मैं उसे, कुत्ते की औलाद को...उसे यह बताओ,
माशा.”
माशा का चेहरा लाल
हो गया और वह शिक्षक से मुख़ातिब होकर फ्रान्सीसी में बोली कि उसके पिता उससे
नम्रता और शिष्टाचार की अपेक्षा रखते हैं.
फ्रांसीसी ने झुककर
उसका अभिवादन किया और जवाब दिया कि वह अपने लिए सम्मान की अपेक्षा रखता है,
चाहे उस पर मेहेरबानी भले ही न की जाए.
मीशा ने इस जवाब का
शब्दशः अनुवाद कर दिया.
“अच्छा,
अच्छा,” किरीला पेत्रोविच ने कहा,
“उसे न तो मेहेरबानियों की ज़रूरत है, न ही सम्मान की.
उसका काम है साशा की देखभाल करना और उसे व्याकरण और भूगोल पढ़ाना – अनुवाद करो
इसका.”
मारिया किरीलव्ना ने
पिता के अशिष्ट वाक्यों को अपने अनुवाद में सौम्य करके प्रस्तुत किया,
और किरीला पेत्रोविच ने अपने फ्रांसीसी को पार्श्वगृह में भेज दिया,
जहाँ उसे कमरा दिया गया था.
माशा ने नौजवान
फ्रांसीसी की ओर कोई ध्यान नहीं दिया, सामन्तवादी सभ्यता में पली उस नारी के लिए
शिक्षक एक प्रकार का सेवक या कारीगर था और सेवक अथवा कारीगर को वह पुरुष नहीं
मानती थी. मिस्टर देफोर्ज पर उसने जो प्रभाव डाला था उसे उसने नहीं भाँपा,
न ही देख पाई वह उसकी सकुचाहट, उसकी थरथराहट और उसकी बदली हुई आवाज़ को. इसके
पश्चात् कई दिनों तक लगातार वह उससे मिली, मगर उसकी ओर विशेष
ध्यान नहीं दिया. अप्रत्याशित रूप से उसे उसके बारे में नई जानकारी प्राप्त हुई.
किरीला पेत्रोविच के
आँगन में अक्सर कई भालुओं के बच्चे पलते थे, जो पक्रोव्स्कोए के
ज़मींदार के मनोरंजन के प्रमुख साधन थे. नन्हे भालुओं को प्रतिदिन मेहमानख़ाने में
लाया जाता, जहाँ किरीला पेत्रोविच घण्टों उनके साथ खेला करता,
उन्हें कुत्तों के पिल्लों और बिल्लियों से लड़वाया करता. बड़े होने पर उन्हें
जंज़ीरों से बांधकर रखा जाता, वास्तविक युद्ध की प्रतीक्षा में. कभी-कभी
उन्हें मालिक के मकान की खिड़कियों के सामने लाया जाता और उनके सामने शराब से भरा
ड्रम लुढ़काया जाता, जिसका ढक्कन कीलों से बंद कर दिया जाता था. भालू
उसे सूँघता, फिर धीरे-धीरे उसके पास आकर उसे छूता, उसे खोलने की कोशिश
में उसकी हथेलियाँ छिल जातीं, गुस्से में वह उसे और ज़ोर से धकेलता,
दर्द और तेज़ हो जाता. वह पूरी तरह पागल हो जाता, हुँकार भरते हुए
बार-बार ड्रम पर झपटता, तब तक, जब तक कि उस गरीब
जानवर के सामने से उस उत्तेजित करने वाली वस्तु को हटा नहीं लिया जाता. कभी-कभी
ऐसा होता, कि गाड़ी में भालू जोत दिए जाते, उसमें मेहमानों को बैठा दिया जाता – वे चाहें या
न चाहें – और उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता. मगर किरीला पेत्रोविच का बेहतरीन
मज़ाक कुछ इस तरह का था :
भूखे भालू को एक
खाली कमरे में बंद कर दिया जाता, उसके गले में रस्सी बाँधकर दूसरा सिरा दीवार में
जड़े एक कुन्दे से बांध दिया जाता. रस्सी की लम्बाई पूरे कमरे की लम्बाई के बराबर
होती, मतलब सिर्फ एक, सामने वाला कोना, भयानक जानवर के
आक्रमणों से सुरक्षित था. अक्सर किसी नए आदमी को इस कमरे के दरवाज़े तक लाया जाता,
उसे अचानक भालू के पास धकेल दिया जाता, दरवाज़ा बन्द हो जाता
और बदनसीब शिकार को रोएँदार सिरफिरे के साथ छोड़ दिया जाता. बेचारा मेहमान,
तार-तार हुए कपड़ों और लहूलुहान खरोंचों समेत शीघ्र ही सुरक्षित कोना ढूँढ़
लेता, मगर कभी-कभी तो उसे पूरे तीन घण्टों तक दीवार से सटकर खड़े रहना पड़ता और
देखना पड़ता गुस्से से पागल, गुर्राते हुए, उछलते हुए जानवर को,
जो गुस्से में सिर के बल खड़ा हो जाता, उसके निकट पहुँचने
की जी तोड़ कोशिश करता.
तो ऐसे थे मनोरंजक
खेल रूसी ज़मींदारों के! शिक्षक के आगमन के कुछ दिनों बाद त्रोएकूरव को उसकी याद आई
और उसने भालूवाले कमरे में उसका स्वागत करने की ठानी, इसलिए एक दिन सुबह
उसे बुलाकर, अपने साथ अँधेरे गलियारों में ले गया, अचानक बगलवाला
दरवाज़ा खुला, दो नौकरों ने फ्रांसीसी को उसमें धकेला और चाभी
से दरवाज़ा बंद कर दिया. सँभलने पर शिक्षक ने बँधे हुए भालू को देखा,
जानवर दूर से ही अपने मेहमान को सूँघते हुए फ़ुफ़कारने लगा और अचानक पिछले
पैरों पर उठकर उसकी ओर बढ़ा...फ्रांसीसी घबराया नहीं, भागा भी नहीं और
आक्रमण का इंतज़ार करने लगा. भालू निकट आने लगा, देफोर्ज ने जेब से
छोटी-सी पिस्तौल निकाली, उसे भूखे जानवर के कान में रखा और दाग़ दिया.
भालू धराशायी हो गया. सब भाग कर आए, दरवाज़े खुल गए. किरीला पेत्रोविच अन्दर आया और
अपने मज़ाक का परिणाम देखकर भौंचक्का रह गया. किरीला पेत्रोविच को फ़ौरन पूरे मामले
की सफ़ाई चाहिए थी : इस मज़ाक के बारे में, जो उसी के लिए बनाया
गया था, देफोर्ज को किसने आगाह किया था, उसकी जेब में भरी हुई पिस्तौल क्यों थी. उसने
माशा को बुलवाया, माशा भागती हुई आई और फ्रांसीसी को पिता के
प्रश्नों का अनुवाद करके सुना दिया.
“मैंने भालू के बारे
में सुना नहीं था”, देफोर्ज ने जवाब दिया,
“मगर मैं हमेशा भरी हुई पिस्तौलें अपने साथ रखता हूँ,
क्योंकि अपमान मैं सह नहीं सकता, जिसका स्पष्टीकरण, अपने पेशे के कारण
माँग नहीं सकता.”
माशा ने आश्चर्य से
उसकी ओर देखा और उसके शब्दों का अनुवाद किरीला पेत्रोविच को सुना दिया. किरीला
पेत्रोविच ने कोई जवाब नहीं दिया, उसने भालू को बाहर घसीटने और उसकी खाल निकालने
की आज्ञा दे दी, फिर अपने लोगों से मुख़ातिब होकर बोला,
“कितना बहादुर है! डरा नहीं, ऐ ख़ुदा! ज़रा भी डरा नहीं!” उस क्षण से वह
देफोर्ज से प्यार करने लगा और फिर कभी उसे आज़माने के बारे में उसने सोचा भी नहीं.
मगर इस घटना का मारिया
किरीलव्ना पर गहरा प्रभाव पड़ा. उसकी कल्पना को किसी ने झकझोर दिया था : उसने मरे
हुए भालू को देखा और देफोर्ज को देखा, जो शान्ति से उसके ऊपर खड़ा थाऔर शान्ति से ही
उसके साथ बातचीत कर रहा था. उसने महसूस किया कि स्वाभिमान और बहादुरी केवल किसी एक
सामाजिक स्तर की बपौती नहीं है, और तब से वह नौजवान शिक्षक का आदर करने लगी,
जो घण्टे-दर-घण्टे अधिकाधिक एकाग्र होता गया. उनके बीच संबंधों की एक डोर बन
गई. माशा की आवाज़ बड़ी मीठी थी एवम् उसमें संगीत सीखने की भी योग्यता थी – देफोर्ज
ने उसे संगीत सिखाने का प्रस्ताव रखा. इसके बाद तो पाठकों को यह अन्दाज़ लगाना कठिन
न होगा कि माशा को उससे प्यार हो गया, जबकि वह ख़ुद इस बात को स्वीकार नही करती थी.
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