अध्याय – 10
शाम
के करीब सात बजे कुछ मेहमानों ने जाना चाहा, मगर
मेज़बान जो मद्यपान से अत्यधिक प्रसन्न नज़र आ रहा था, यह
आज्ञा दी कि सभी दरवाज़े बन्द कर दिए जाएँ और यह घोषणा कर दी कि अगली सुबह से पूर्व
वह किसी को भी आँगन से बाहर नहीं जाने देगा. शीघ्र ही संगीत गूँज उठा, हॉल के दरवाज़े खुल गए. नृत्य आरंभ हो गया. मेज़बान और उसके निकट मित्र एक
कोने में बैठे जाम-पर-जाम पिए जा रहे थे और नौजवानों की ख़ुशी का आनन्द उठा रहे थे.
बूढ़ी औरतें ताश खेल रही थीं. घुड़सवार दस्ते के अफ़सर अक्सर उस जगह पर
कम देखे जाते हैं, जहाँ उनकी कोई टुकड़ी तैनात न हो, यही हाल यहाँ भी था. उनकी संख्या महिलाओं से कम थी, अतः
नृत्य करने लायक सभी पुरुषों को बुलाया गया था. शिक्षक सब लोगों में निखरा पड़ रहा
था, वह सबसे अधिक नृत्य कर रहा था, सभी
महिलाओं ने उसे नृत्य के लिए चुना और यह महसूस किया कि उसके साथ वाल्ट्ज़ करना बहुत
आसान है. कई बार उसने मारिया किरीलव्ना के साथ भी नृत्य किया और उनकी जोड़ी को
देखकर महिलाएँ मज़ाकिया फ़िकरे कस रही थीं. अंत में, लगभग आधी
रात को, थके हुए मेज़बान ने नृत्य रोक दिया और रात्रि का भोजन
परोसने की आज्ञा देकर वह सोने चला गया.
किरीला
पेत्रोविच की अनुपस्थिति ने आमंत्रितों को अधिक स्वतंत्रता और सजीवता प्रदान की.
घुड़सवार दस्ते के अफ़सर हिम्मत करके महिलाओं के निकट बैठ गए. नवयुवतियाँ मुस्कुरा
रही थीं और अपने पड़ोसियों से फुसफुसाकर बातें कर रही थीं,
महिलाएँ मेज़ पर आमने-सामने ज़ोर-ज़ोर से बातें कर रही थीं. पुरुष पी
रहे थे, बहस कर रहे थे और ठहाके लगा रहे थे – संक्षेप में,
रात्रिभोज बड़ा आमोद-प्रमोदमय हो गया था और उसने अनेक ख़ुशगवार यादें
छोड़ीं.
सिर्फ
एक ही आदमी इस सार्वजनिक ख़ुशी में भाग नहीं ले पा रहा था : अन्तोन पाफ्नूतिच बड़ा
उदास बैठा था, वह ख़ामोश था, बेदिली से खा रहा था और काफ़ी परेशान नज़र आ रहा था. डाकुओं के बारे में
सुनी हुई बातें उसकी कल्पना को व्याकुल किए जा रही थीं. हम शीघ्र ही देखेंगे कि
उसके भयभीत होने का एक सबल कारण भी था.
अन्तोन
पाफ्नूतिच ज़मींदारों को साक्षी रखते हुए बोला था कि उसका लाल सन्दूक खाली था,
न तो वह झूठ बोला, न ही उसने अपराध किया : लाल
सन्दूक सचमुच ही खाली था; पैसे, धन,
जो कभी उसमें रखे रहते थे, सरकारी ख़ज़ाने में
पहुँच चुके थे, जहाँ वह उन्हें अपनी कमीज़ के नीचे, सीने पर बांधकर ले गया था. अपनी इस अति सावधानी से ही वह अपनी भय की
शाश्वत भावना एवम् हर चीज़ पर शक करने की आदत से कुछ हद तक निज़ात पा सका था. पराए
घर में रात बिताने के लिए मजबूर होने के कारण वह डर रहा था कि कहीं उसका बिस्तर
किसी अलग-थलग सुनसान कमरे में न लगा दिया जाए, जहाँ चोर
आसानी से प्रवेश कर सकते थे, वह आँखों-ही-आँखों में किसी
विश्वसनीय साथी को तलाश रहा था और आख़िरकार उसने देफोर्ज को चुना. शक्तिमान होने का
प्रमाण देते हुए उसके बाह्य व्यक्तित्व और उस भालू के साथ मुठभेड़ के समय दिखाई गई
उसकी बहादुरी ने, जिसकी याद बेचारे अन्तोन पाफ्नूतिच के शरीर
में हमेशा सिहरन भर देती थी, उसने चुनाव को पक्का कर दिया.
जब सब लोग मेज़ से उठे तो अन्तोन पाफ्नूतिच नौजवान फ्रांसीसी के इर्द-गिर्द मंडराता
रहा, गला साफ़ करते और खाँसते हुए आख़िर में उसने पूछ ही लिया
:
“अं...हम्...महाशय,
क्या मैं आज की रात आपके कमरे में गुज़ार सकता हूँ, क्योंकि जैसा कि आप देख ही रहे हैं...”
“क्या
चाहते हैं, महाशय”, देफोर्ज
ने आदरपूर्वक झुककर फ्रांसीसी में पूछा.
“आह,
क्या मुसीबत है, यह महाशय रूसी अभी तक सीखे
नहीं हैं. मैं आपके पास सोना चाहता हूँ (टूटी-फूटी फ्रांसीसी में उसने पूछा) समझ
रहे हो?”
“ख़ुशी
से”, देफोर्ज ने फ्रांसीसी में जवाब दिया, “कृपया उस हिसाब से इंतज़ाम करने की इजाज़त दें”.
अन्तोन
पाफ्नूतिच फ्रांसीसी भाषा में अपनी सफ़लता देखकर बहुत ख़ुश हुआ,
और देफोर्ज फ़ौरन इंतज़ाम करने चला गया.
मेहमान
एक दूसरे से बिदा लेने लगे, और हर मेहमान
उसके लिए निर्धारित कमरे में जाने लगा. अन्तोन पाफ्नूतिच पार्श्वगृह की ओर चल पड़ा.
रात अँधेरी थी. देफोर्ज लालटेन से रास्ता दिखा रहा था, अन्तोन
पाफ्नूतिच काफ़ी निडरतापूर्वक उसके पीछे-पीछे चल रहा था, कभी-कभार
सीने पर बाँधी हुई रकम को छूकर देख लेता था, यह विश्वास
दिलाने के लिए कि उसका धन अभी उसी के पास है.
पार्श्वगृह
में आने के बाद शिक्षक ने मोमबत्ती जलाई, और वे
कपड़े बदलने लगे, इसी बीच अन्तोन पाफ्नूतिच कमरे में
घूम-घूमकर ताले, खिड़कियों का निरीक्षण करता रहा और इस घबराहट
पैदा करने वाली स्थिति में सिर हिला देता था. दरवाज़े सिर्फ एक ही कुण्डे से बन्द
किए गए थे, खिड़कियों में दोहरी चौखट नहीं थी. उसने देफोर्ज
से इस बात की शिकायत करनी चाही, मगर फ्रांसीसी भाषा का उसका
ज्ञान अत्यन्त सीमित था, और इस बात को समझाने के लिए
पर्याप्त नहीं था – फ्रांसीसी उसे समझ नहीं पा रहा था, और
अन्तोन पाफ्नूतिच को अपनी शिकायतों के कार्यक्रम को छोड़ देना पड़ा. उनके पलंग
आमने-सामने बिछे थे, दोनों लेट गए और शिक्षक ने मोमबत्ती बुझा
दी.
“क्यों
बुझाते हो, क्यों बुझाते हो”, अन्तोन पाफ्नूतिच फ्रांसीसी भाषा में चीखकर बोला और गलती से उसने रूसी क्रिया
‘बुझाने’ को जैसे का तैसा फ्रांसीसी तरीके
से कह दिया, “मैं अँधेरे में सो नहीं सकता”. (यह भी आधी रूसी
आधी फ्रांसीसी में कहा गया था) देफोर्ज उसके उद्गारों को समझ नहीं पाया और उसने उसे
“शुभ रात्रि” कह दिया.
“पापी
काफ़िर!” स्पीत्सिन कम्बल में दुबकते हुए बड़बड़ाया. “उसे मोमबती बुझानी क्यों थी?
उसी के लिए बुरा है. मैं तो रोशनी के बगैर सो नहीं सकता.”
“महाशय,
महाशय”, वह कहता रहा, “मुझे
आपसे बातें करनी हैं (फ्रांसीसी में),” मगर फ्रांसीसी ने कोई
जवाब नहीं दिया और जल्दी ही खर्राटे भरने लगा.
“खर्राटे
भर रहा है, दुष्ट फ्रांसीसी”, अन्तोन पाफ्नूतिच ने सोचा, “और यहाँ तो सोने का ख़याल
भी मेरे दिल में नहीं आ रहा. देखते-ही-देखते चोर खुले हुए दरवाज़ों से अन्दर घुस आएँगे,
खिड़कियों से कूदकर चले जाएँगे और इस बेवकूफ़ को तो तोप के गोलों से भी
जगाना मुश्किल है.”
“महाशय!
ओS
महाशय! शैतान तुझे ले जाए!”
अन्तोन
पाफ्नूतिच चुप हो गया – थकान और शराब ने धीरे-धीरे उसके भय पर काबू पा लिया,
वह ऊँघने लगा और जल्दी ही गहरी नींद ने उस पर पूरी तरह काबू पा लिया.
वह
बड़े विचित्र ढंग से उठा. सपने में उसे यूँ प्रतीत हुआ कि कोई उसकी कमीज़ का कॉलर पकड़कर
उसे धीरे से झकझोर रहा है. अन्तोन पाफ्नूतिच ने आँखें खोलीं और शिशिर की सुबह चाँद
की रोशनी में अपने सामने देफोर्ज को देखा, फ्रांसीसी
ने एक हाथ में जेबी पिस्तौल पकड़ रखा था, दूसरे हाथ से वह सीने
पर बाँधकर छुपाई गई रकम को ढीला कर रहा था. अन्तोन पाफ्नूतिच मानो जम गया.
“क्या
है यह, महाशय, क्या है यह”,
उसने कँपकँपाती आवाज़ से फ्रांसीसी में पूछा.
“धीरे,
चुप!” शिक्षक ने स्पष्ट रूसी में जवाब दिया, “चुप
रहना, वरना आपका काम तमाम हो जाएगा. मैं दुब्रोव्स्की हूँ!”
No comments:
Post a Comment