अध्याय
– 14
मारिया
किरीलव्ना अपने कमरे में खुली खिड़की के सामने बैठकर कढ़ाई कर रही थी. कोन्राड की
प्रियतमा की भाँति वह रेशम के धागों में गड़बड़ नहीं करती थी,
जिसने प्रेम में मगन, गुलाब के फूल को हरे
रेशम से काढ़ दिया था. उसकी फ्रेम में कढ़ाई बिना किसी त्रुटि के होती थी, मगर फिर भी काम में उसका मन नहीं लग रहा था, वह तो
कहीं और ही था.
अचानक
खिड़की की ओर एक हाथ बढ़ा, और इससे पहले कि मारिया
किरीलव्ना कुछ समझ पाती, किसी ने फ्रेम पर ख़त रखा और छिप
गया. इसी समय सेवक ने अन्दर आकर उसे किरीला पेत्रोविच के पास आने के लिए कहा. उसने
घबराहट में ख़त रुमाल के नीचे छुपाया और पिता के कमरे की ओर भागी.
किरीला
पेत्रोविच अकेला नहीं था. उसके पास राजकुमार वेरेइस्की बैठा हुआ था. मारिया
किरीलव्ना के आते ही राजकुमार खड़ा हो गया और उसने ख़ामोशी से झुककर उसका अभिवादन
किया, कुछ इस अन्दाज़ से जो उसके लिए असाधारण था.
“यहाँ
आओ, माशा”, किरीला पेत्रोविच
ने कहा, “तुम्हें वह ख़बर सुनाता हूँ, जो, मुझे यकीन है कि तुम्हें ख़ुश कर देगी. यह रहा तुम्हारा मंगेतर, राजकुमार तुम्हारा हाथ माँग रहे हैं.”
माशा
बुत बन गई, मौत के पीलेपन ने उसके चेहरे को
ढँक लिया. वह चुप रही. राजकुमार उसके निकट आया, उसका हाथ अपने
हाथों में लेकर दिल को छू लेने वाले अन्दाज़ में पूछने लगा, कि
क्या वह उसे सुखी करने के लिए राज़ी है? माशा ख़ामोश रही.
“राज़ी
है, बेशक राज़ी है”, किरीला पेत्रोविच
बोला, “मगर जानते हो राजकुमार, युवती के
लिए यह शब्द बोलना मुश्किल है. तो, बच्चों, एक-दूसरे का चुम्बन लो और सुखी रहो.”
माशा
निश्चल खड़ी रही, बूढ़े राजकुमार ने उसका हाथ चूमा,
अचानक उसके पीले चेहरे पर आँसू बह निकले. राजकुमार ने नाक-भौंह कुछ चढ़ाए.
“जाओ,
जाओ, जाओ”, किरीला पेत्रोविच
ने कहा, “अपने आँसू पोंछो और ख़ुशी-ख़ुशी हमारे पास आओ. वे सभी
सगाई के अवसर पर रोती ही हैं,” वह वेरेइस्की से मुख़ातिब होकर
कहता रहा, “यह उनका तरीका ही है...अब, राजकुमार,
काम की बात करें, यानि कि दहेज की.”
मारिया
किरीलव्ना ने वापस जाने की इजाज़त का एक लालची की तरह फ़ायदा उठाया. वह अपने कमरे में
आई, दरवाज़ा बन्द कर लिया और बूढ़े राजकुमार की पत्नी
के रूप में स्वयम् की कल्पना करते हुए अपने आँसुओं को बहने दिया, उसे वह अचानक घृणित और तिरस्कृत नज़र आने लगा...शादी उसे यूँ डरा रही थी,
मानो वह सूली पर चढ़ने जा रही हो, मानो कब्र में
सोने जा रही हो...”नहीं, नहीं” वह बदहवासी से बार-बार कहे जा
रही थी, “इससे बेहतर है मर जाना, मॉनेस्ट्री
में जाकर ‘नन’ बन जाना कहीं ज़्यादा अच्छा
है, बेहतर है मैं दुब्रोव्स्की से ब्याह कर लूँ...” अब उसे ख़त
की याद आई और वह उसे पढ़ने के लिए लपकी, यह महसूस करते हुए कि
वह उसी का है. सचमुच में वह ख़त उसी का था और उसमें सिर्फ इतना ही लिखा था :
“शाम
को दस बजे पहले वाली जगह पर.”
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