अध्याय
– 07
दूसरे दिन इस
अग्निकांड की ख़बर पूरे इलाके में फैल गई. सभी इसके बारे में विभिन्न प्रकार के
तर्क-वितर्क कर रहे थे. कुछ लोग यह विश्वास दिला रहे थे कि दुब्रोव्स्की के लोग
अंतिम संस्कार के समय पीकर धुत् हो गए और असावधानीवश घर को आग लगा बैठे;
दूसरे सरकारी कर्मचारियों को दोष दे रहे थे जो नए घर में प्रवेश करने पर
जश्न मना रहे थे; कई लोग दावे के साथ यह कह रहे थे कि
दुब्रोव्स्की भी जिले की अदालत के सदस्यों और अपने सभी नौकर-चाकरों सहित जलकर राख
हो गया. कुछ लोग सच भाँप गए और दृढ़तापूर्वक कह रहे थे कि इस भीषण दुर्घटना का दोषी
स्वयम् दुब्रोव्स्की ही है जो बदहवासी एवम् घृणावश यह कार्य कर बैठा था.
दूसरे दिन त्रोएकूरव
घटनास्थल पर आया और उसने स्वयम् जाँच-पड़ताल की. ज्ञात हुआ कि पुलिस कप्तान,
जिला अदालत का प्रतिनिधि, पेशकार और नकल नवीस, साथ ही व्लादीमिर
दुब्रोव्स्की, आया इगोरोव्ना, सेवक ग्रिगोरी,
कोचवान अन्तोन और लुहार आर्खिप भी गायब हो चुके थे. ज़मींदार के सभी बँधुआ
मज़दूरों ने कहा, कि सरकारी लोग उस समय जल गए जब जलती हुई शहतीर
गिरी थी, उनकी झुलसी हुई हड्डियाँ मलबे से निकाली गई थीं. वसीलिसा और लुके-या ने
बताया कि उन्होंने दुब्रोव्स्की और आर्खिप लुहार को आग लगने से कुछ ही क्षण पहले
देखा था. सभी सबूतों को देखते हुए आर्खिप लुहार जीवित था,
और इस अग्निकाण्ड के पीछे, शायद वही मुख्य, यदि अकेला नहीं तो,
अभियुक्त था. दुब्रोव्स्की पर गहरा शक जाता था. किरीला पेत्रोविच ने इस पूरी
घटना की विस्तृत रिपोर्ट गवर्नर को भेजी, और एक नया ही लफ़ड़ा
शुरू हो गया.
जल्दी ही कुछ नई घटनाओं
ने उत्सुकता एवम् तर्क-वितर्कों के लिए आग में घी का काम किया. ***में डाकू आ गए थे
और सभी देहातों में दहशत फैला रहे थे. शासन द्वारा उनके ख़िलाफ़ उठाए गए सभी कदम असन्तोषजनक
सिद्ध हुए. डकैतियों की संख्या, जो एक से बढ़कर एक काबिले तारीफ़ थीं,
बढ़ती ही गई. रास्तों पर, गाँवों में, कहीं भी कोई सुरक्षित
नहीं था. डाकुओं से भरी ‘त्रोयकाएँ’ पूरे प्रान्त में घूमती
रहतीं. वे राहगीरों और डाकगाड़ियों को रोकते, देहातों में घुस जाते,
ज़मीन्दारों के घर लूटकर उनमें आग लगा देते. इस गिरोह के मुखिया की बुद्धि,
बहादुरी और महानता की भूरि-भूरि प्रशंसा होती. उसके बारे में आश्चर्यजनक बातें
कही जातीं, सभी के होठों पर दुब्रोव्स्की का नाम था, सभी को विश्वास था कि
इन बहादुरी से पूर्ण दुःसाहसी कार्यों का नेतृत्व वही कर रहा है,
कोई और नहीं. आश्चर्य सिर्फ एक बात का था, त्रोएकूरव की जागीर को
छुआ तक नहीं गया था, डाकुओं ने उसकी एक भी सराय को नहीं लूटा था,
एक भी गाड़ी को नहीं रोका था. स्वभावगत शेखी से त्रोएकूरव इस अपवाद का कारण उस
आतंक को मानता था, जो उसने पूरे प्रान्त में फैला रखा था,
साथ ही उसके द्वारा अपने गाँवों में रखी गई बेहतरीन पुलिस को भी इसका श्रेय जाता
था. पहले तो पड़ोसी त्रोएकूरव के इस बड़बोलेपन की हँसी उड़ाते और प्रतिदिन यही मनाते,
कि बिन बुलाए मेहमान पक्रोव्स्कोए ज़रूर आएँ, जहाँ उन्हें काफ़ी ‘माल’
मिलेगा, मगर अन्त में उन्हें मानना ही पड़ा कि डाकुओं के दिल
में भी उसके प्रति एक अबूझ आदर की भावना है...त्रोएकूरव बड़ा ख़ुश था और दुब्रोव्स्की
द्वारा डाले गए हर नए डाके की सूचना मिलने पर वह उस स्थान के गवर्नर,
पुलिस अधिकारियों और सेना के कमाण्डरों की दिल खोलकर खिल्ली उड़ाता,
जिनसे बचकर दुब्रोव्स्की हमेशा सही-सलामत बच निकलता.
इसी बीच अक्तूबर की पहली
तारीख आ गई, ‘त्रोएकूरव के गाँव के मन्दिर में मनाए जाने वाले उत्सव’ का था यह दिन. मगर इस
उत्सव के आयोजन का एवम् आगामी घटनाओं का वर्णन करने से पहले हमें अपने पाठकों से उन
पात्रों का परिचय कराना होगा, जो उसके लिए नए हैं, मगर जिनका इस कहानी के
आरंभ में हमने सिर्फ उल्लेख ही किया था.
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