Friday, 25 January 2019

दुब्रोव्स्की - 07



अध्याय – 07


दूसरे दिन इस अग्निकांड की ख़बर पूरे इलाके में फैल गई. सभी इसके बारे में विभिन्न प्रकार के तर्क-वितर्क कर रहे थे. कुछ लोग यह विश्वास दिला रहे थे कि दुब्रोव्स्की के लोग अंतिम संस्कार के समय पीकर धुत् हो गए और असावधानीवश घर को आग लगा बैठे; दूसरे सरकारी कर्मचारियों को दोष दे रहे थे जो नए घर में प्रवेश करने पर जश्न मना रहे थे; कई लोग दावे के साथ यह कह रहे थे कि दुब्रोव्स्की भी जिले की अदालत के सदस्यों और अपने सभी नौकर-चाकरों सहित जलकर राख हो गया. कुछ लोग सच भाँप गए और दृढ़तापूर्वक कह रहे थे कि इस भीषण दुर्घटना का दोषी स्वयम् दुब्रोव्स्की ही है जो बदहवासी एवम् घृणावश यह कार्य कर बैठा था.

दूसरे दिन त्रोएकूरव घटनास्थल पर आया और उसने स्वयम् जाँच-पड़ताल की. ज्ञात हुआ कि पुलिस कप्तान, जिला अदालत का प्रतिनिधि, पेशकार और नकल नवीस, साथ ही व्लादीमिर दुब्रोव्स्की, आया इगोरोव्ना, सेवक ग्रिगोरी, कोचवान अन्तोन और लुहार आर्खिप भी गायब हो चुके थे. ज़मींदार के सभी बँधुआ मज़दूरों ने कहा, कि सरकारी लोग उस समय जल गए जब जलती हुई शहतीर गिरी थी, उनकी झुलसी हुई हड्डियाँ मलबे से निकाली गई थीं. वसीलिसा और लुके-या ने बताया कि उन्होंने दुब्रोव्स्की और आर्खिप लुहार को आग लगने से कुछ ही क्षण पहले देखा था. सभी सबूतों को देखते हुए आर्खिप लुहार जीवित था, और इस अग्निकाण्ड के पीछे, शायद वही मुख्य, यदि अकेला नहीं तो, अभियुक्त था. दुब्रोव्स्की पर गहरा शक जाता था. किरीला पेत्रोविच ने इस पूरी घटना की विस्तृत रिपोर्ट गवर्नर को भेजी, और एक नया ही लफ़ड़ा शुरू हो गया.

जल्दी ही कुछ नई घटनाओं ने उत्सुकता एवम् तर्क-वितर्कों के लिए आग में घी का काम किया. ***में डाकू आ गए थे और सभी देहातों में दहशत फैला रहे थे. शासन द्वारा उनके ख़िलाफ़ उठाए गए सभी कदम असन्तोषजनक सिद्ध हुए. डकैतियों की संख्या, जो एक से बढ़कर एक काबिले तारीफ़ थीं, बढ़ती ही गई. रास्तों पर, गाँवों में, कहीं भी कोई सुरक्षित नहीं था. डाकुओं से भरी त्रोयकाएँपूरे प्रान्त में घूमती रहतीं. वे राहगीरों और डाकगाड़ियों को रोकते, देहातों में घुस जाते, ज़मीन्दारों के घर लूटकर उनमें आग लगा देते. इस गिरोह के मुखिया की बुद्धि, बहादुरी और महानता की भूरि-भूरि प्रशंसा होती. उसके बारे में आश्चर्यजनक बातें कही जातीं, सभी के होठों पर दुब्रोव्स्की का नाम था, सभी को विश्वास था कि इन बहादुरी से पूर्ण दुःसाहसी कार्यों का नेतृत्व वही कर रहा है, कोई और नहीं. आश्चर्य सिर्फ एक बात का था, त्रोएकूरव की जागीर को छुआ तक नहीं गया था, डाकुओं ने उसकी एक भी सराय को नहीं लूटा था, एक भी गाड़ी को नहीं रोका था. स्वभावगत शेखी से त्रोएकूरव इस अपवाद का कारण उस आतंक को मानता था, जो उसने पूरे प्रान्त में फैला रखा था, साथ ही उसके द्वारा अपने गाँवों में रखी गई बेहतरीन पुलिस को भी इसका श्रेय जाता था. पहले तो पड़ोसी त्रोएकूरव के इस बड़बोलेपन की हँसी उड़ाते और प्रतिदिन यही मनाते, कि बिन बुलाए मेहमान पक्रोव्स्कोए ज़रूर आएँ, जहाँ उन्हें काफ़ी मालमिलेगा, मगर अन्त में उन्हें मानना ही पड़ा कि डाकुओं के दिल में भी उसके प्रति एक अबूझ आदर की भावना है...त्रोएकूरव बड़ा ख़ुश था और दुब्रोव्स्की द्वारा डाले गए हर नए डाके की सूचना मिलने पर वह उस स्थान के गवर्नर, पुलिस अधिकारियों और सेना के कमाण्डरों की दिल खोलकर खिल्ली उड़ाता, जिनसे बचकर दुब्रोव्स्की हमेशा सही-सलामत बच निकलता.

इसी बीच अक्तूबर की पहली तारीख आ गई, ‘त्रोएकूरव के गाँव के मन्दिर में मनाए जाने वाले उत्सव का था यह दिन. मगर इस उत्सव के आयोजन का एवम् आगामी घटनाओं का वर्णन करने से पहले हमें अपने पाठकों से उन पात्रों का परिचय कराना होगा, जो उसके लिए नए हैं, मगर जिनका इस कहानी के आरंभ में हमने सिर्फ उल्लेख ही किया था.

Thursday, 24 January 2019

दुब्रोव्स्की - 06



अध्याय – 06


सब कुछ ख़त्म हो गया,’ उसने अपने आप से कहा, ‘सुबह मेरे पास एक अपना कोना और खाने का निवाला था. कल मैं यह घर, जहाँ मेरा जन्म हुआ था, पिता की मृत्यु हुई, उसके लिए छोड़ जाऊँगा, जो उसकी मृत्यु और मेरी निर्धनता का कारण है. और उसकी आँखें अपनी माँ की तस्वीर पर स्थिर हो गईं. चित्रकार ने उसे सुबह वाली सफ़ेद पोषाक में, बालों में लाल गुलाब लगाए, मुँडेर पर झुकते हुए दिखाया था. यह तस्वीर भी मेरे परिवार के दुश्मन के हाथ पड़ेगी’, व्लादीमिर ने सोचा, ‘तब शायद उसे टूटी-फूटी कुर्सियों समेत कबाड़खाने में फेंक दिया जाएगा या शायद मेहमानखाने में टाँगा जाएगा, जहाँ वह उसके कुत्ते पालने वालों की टीका-टिप्पणियो और उपहास का पात्र बन जाएगी; और उसके शयनकक्ष में, उस कमरे में, जहाँ पिता की मृत्यु हुई, उसका हरकारा बस जाएगा, या शायद वह उसका हरम हो जाएगा. नहीं! नहीं! जिस घर से वह मुझे निकाल रहा है, वह अभागा घर उसे भी नसीब नहीं होगा’. व्लादीमिर ने दाँत भींचे, उसके दिमाग में भयानक विचार उपज रहे थे. सरकारी सहायकों की आवाज़ें उस तक पहुँच रही थीं, अन्दर उनका ही राज था, वे कभी एक तो कभी दूसरी चीज़ की माँग करते और उसे अपने नैराश्यपूर्ण विचारों से बाहर ले आते. आख़िरकार सब कुछ शान्त हो गया.

व्लादीमिर ने अलमारियाँ और दराज़ें खोलीं और मृतक के कागज़ातों को छाँटने में व्यस्त हो गया. उनमें अधिकांश घरेलू हिसाब सम्बंधी कागज़ एवम् विविध विषयों पर की गई ख़तो-किताबत शामिल थी. व्लादीमिर बिना पढ़े उन्हें फ़ाड़ता गया. उनमें उसे एक लिफ़ाफ़ा दिखाई दिया, जिस पर लिखा था, ‘मेरी पत्नी के ख़त’. आवेग में आकर व्लादीमिर ने उन्हें पढ़ना शुरू किया. वे तुर्की के युद्ध के दौरान लिखे गए थे और किस्तेनेव्को से सीधे फ़ौज को भेजे गए थे. उसने अपनी मरुस्थल के समान सूनी ज़िंदगी का वर्णन किया था, घरेलू परेशानियों का ज़िक्र किया था, नज़ाकत से विछोह पर शिकायत की थी और उसे घर पर, प्रिय सखी की बाँहों में आने के लिए लिखा थ, एक ख़त में नन्हे व्लादीमिर के स्वास्थ्य के बारे में चिंता प्रकट की गई थी, दूसरे में उस नन्हे बालक की योग्यताओं पर हर्ष प्रकट करते हुए उसके सुखद एवम् समृद्ध भविष्य की भविष्यवाणी की गई थी. व्लादीमिर पढ़ते-पढ़ते खो गया और अपने आस-पास की दुनिया को भूल गया, पारिवारिक सुखों की दुनिया में वह पूरी तन्मयता से खो गया और उसे ध्यान ही न रहा कि समय कैसे बीत गया. दीवार घड़ी ने ग्यारह घण्टे बजाए. व्लादीमिर ने ख़त को जेब में रखा, मोमबत्ती ली और अध्ययन-कक्ष से बाहर निकला. मेहमानख़ाने में सरकारी अफ़सर फर्श पर सो रहे थे. मेज़ पर उनके द्वारा खाली किए गए गिलास रखे थे और शराब की तीखी गन्ध से पूरा कमरा भर गया था. व्लादीमिर घृणापूर्वक उनके निकट से होता हुआ सामने के कक्ष में गया -  दरवाज़े बंद थे. चाभी न पाकर वह वापस प्रवेश-कक्ष में आया, चाभी मेज़ पर पड़ी थी. व्लादीमिर ने दरवाज़ा खोला और एक आदमी से टकरा गया, जो कोने में दुबककर खड़ा था – उसके हाथों में कुल्हाड़ी चमक रही थी. उसकी ओर मोमबत्ती लेकर देखते ही उसने आर्खिप लुहार को पहचान लिया. “यहाँ तुम क्या कर रहे हो?” उसने पूछा. “आह, व्लादीमिर पेत्रोविच, यह आप हैं,” आर्खिप ने फुसफुसाकर कहा, “ख़ुदा, दया करो और रक्षा करो. यह तो अच्छा हुआ, कि आप मोमबत्ती लेकर आए!” व्लादीमिर ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा. “तुम यहाँ क्यों छिपे हो?” उसने लुहार से पूछा.

“मैं चाहता था...मैं इसलिए आया था...देखना था कि सब घर पर हैं या नहीं”, आर्खिप ने अटकते हुए हौले से जवाब दिया.

“तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी क्यों है?”

“कुल्हाड़ी क्यों है? बगैर कुल्हाड़ी के आजकल कोई निकल ही कैसे सकता है. ये सरकारी लोग, देख तो रहे हैं, कैसे...शैतान हैं...कैसे...”

“तुम नशे में हो, कुल्हाड़ी फेंक दो, जाकर सो जाओ.”

“मैं नशे में? मालिक व्लादीमिर अन्द्रेयेविच, ख़ुदा गवाह है, एक बूंद भी मुँह में नहीं गई है...और शराब नशा करे भी तो कैसे, कभी सुनी है ऐसी बात, सरकारी नौकर हम पर हुकूमत जताने चले, सरकारी नौकर हमारे मालिक को उनके घर से निकालने चले...कैसे खर्राटे ले रहे हैं, शैतान! सबको एक साथ ख़त्म करके पानी में फेंकना है!”

दुब्रोव्स्की ने नाक-भौं चढ़ा ली. सुनो, आर्खिप,” उसने कुछ देर चुप रहकर कहा, “तुम बात को ठीक से समझे नहीं. सरकारी नौकरों का इसमें कोई दोष नहीं है. लालटेन जलाओ, मेरे पीछे आओ.”

आर्खिप ने मालिक के हाथ से मोमबत्ती ली, भट्टी के पीछे से लालटेन ढूँढ़ निकाली, उसे जलाया और दोनों ख़ामोशी से ड्योढ़ी से उतरकर आँगन के किनारे-किनारे चले. चौकीदार ने लोहे का घंटा बजाना शुरू किया, कुत्ते भौंकने लगे. “चौकीदार कौन है?” दुब्रोव्स्की ने पूछा. “हम हैं, मालिक”, एक पतली आवाज़ ने उत्तर दिया, “वसीलिसा और लुके-या, अपने-अपने घर जाओ,” दुब्रोव्स्की ने उनसे कहा, “तुम्हारी ज़रूरत नहीं है”. “बस हो गया”, आर्खिप ने विनती की. “धन्यवाद, अन्नदाता”, औरतें बोलीं और फ़ौरन घर चली गईं.

दुब्रोव्स्की आगे बढ़ा. दो आदमी उसके निकट आए, उन्होंने उसे आवाज़ दी. दुब्रोव्स्की ने अन्तोन और ग्रीशा की आवाज़ पहचानी. “तुम लोग सोते क्यों नहीं?” उसने उनसे पूछा. “नींद कहाँ से आएगी”, अन्तोन ने जवाब दिया. “क्या दिन देखना पड़ा है, कौन सोच सकता था!

“धीरे!” दुब्रोव्स्की ने टोका. “इगोरोव्ना कहाँ है?”

“मालिकों के घर, अपने कमरे में”, ग्रीशा ने जवाब दिया.

“जाओ उसे यहाँ ले आओ, और घर से अपने सभी लोगों को बुला लाओ, देखो, सरकारी लोगों को छोड़कर एक भी वहाँ रहने न पाए, और तुम, अन्तोन, गाड़ी जोतो.”

ग्रीशा चला गया और एक मिनट बाद अपनी माँ के साथ वापस आया. बुढ़िया ने उस रात कपड़े भी नहीं बदले थे, सरकारी लोगों को छोड़कर घर में किसी की भी आँख नहीं लगी थी.

“सब आ गए?” दुब्रोव्स्की ने पूछा, “कोई घर में तो नहीं रह गया?”

“सरकारी लोगों के अलावा कोई नहीं,” ग्रीशा ने जवाब दिया.

“घास-फूस लाओ”, दुब्रोव्स्की ने कहा.

लोग अस्तबल की ओर भागे और हाथों में घास-फूस लेकर आए.

“ड्योढ़ी के नीचे बिछाओ. ऐसे. तो, जवानों, आग...!”

आर्खिप ने लालटेन खोली, दुब्रोव्स्की ने मशाल जलाई.

“रुको”, उसने आर्खिप से कहा, “लगता है, जल्दी में मैं मेहमानखाने के दरवाज़े बंद कर आया, जल्दी जाकर उन्हें खोल दो.”

आर्खिप भागा, दरवाज़े खुले हुए थे. आर्खिप ने उन्हें बंद करके चाभी घुमाई, हौले से बोला, “अब खोल लो!” और दुब्रोव्स्की के पास वापस आया.

दुब्रोव्स्की मशाल को नज़दीक लाया, घास-फूस ने आग पकड़ ली, लपटें ऊँची उठने लगीं और पूरे आँगन को आलोकित करने लगीं.

“आह!” शिकायत के सुर में इगोरोव्ना चिल्लाई, “व्लादीमिर अन्द्रेयेविच, ये तुम क्या कर रहे हो?”

“चुप”, दुब्रोव्स्की ने कहा. “अच्छा बच्चों, अलबिदा, ख़ुदा की जहाँ इच्छा होगी, वहाँ जाऊँगा, ख़ुश रहो अपने नए मालिक के साथ!”

“हमारे माई-बाप, अन्नदाता”, लोगों ने जवाब दिया, “मर जाएँगे, मगर तुम्हें नहीं छोड़ेंगे, तुम्हारे साथ ही चलेंगे!”

घोड़े तैयार थे. दुब्रोव्स्की ग्रीशा के साथ गाड़ी में बैठ गया और उनसे किस्तेनेव्को के वन में मिलने को कहा. अन्तोन ने घोड़ों को चाबुक मारा, और वे आँगन से बाहर निकले.

हवा चलने लगी. एक ही मिनट में लपटों ने पूरे घर को अपनी चपेट में ले लिया. छत से लाल-लाल धुँआ निकलने लगा. शीशे चटखने लगे, चूर-चूर हो गए, जलती हुई शहतीरें गिरने लगीं, आर्त स्वर में चीख़-पुकार सुनाई देने लगी, “बचाओ, जल रहे हैं, बचाओ!” “ठेंगे से!” लपटों की ओर देखते हुए कटु मुस्कान से आर्खिप ने कहा. “आर्खिपूश्का”, इगोरोव्ना ने कहा, “उन दीवानों को बचाओ, ख़ुदा तुम्हें इनाम देगा”. 

“ठेंगे से!” लुहार ने जवाब दिया.

इसी क्षण दोहरी खिड़कियों को तोड़ने की कोशिश करते हुए सरकारी नौकर दिखाई दिए. मगर तभी चरमराहट की आवाज़ के साथ एक शहतीर गिरी और उनकी चीख़ें शान्त हो गईं.

जल्दी ही सारे सेवक आँगन में निकल आए. औरतें चीखती हुईं अपने सामान को बचाने दौड़ी, आग को देखकर बच्चे ख़ुशी से कूदने लगे. आग के इस तूफ़ान के साथ चिंगारियाँ उड़ने लगीं, झोंपड़ियाँ जलने लगीं.

“अब सब ठीक है”, आर्खिप बोला, “कैसा जल रहा है, हाँ? पक्रोव्स्कोए से देखने पर बड़ा मज़ा आएगा!”

इसी समय एक नई घटना ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया: जलती हुई सराय की शहतीर पर एक बिल्ली बदहवासी से भाग रही थी, वह समझ नहीं पा रही थी कि किधर कूदे, लपटों ने उसे चारों ओर से दबोच लिया था. बेचारा गरीब जानवर आर्ततापूर्वक म्याऊँ-म्याऊँ करते हुए मदद माँग रहा था. उसके बदहवासी को देखकर बच्चे हँसते-हँसते लोट-पोट हुए जा रहे थे.

“क्यों हँसते हो, शैतानो?” लुहार ने क्रोधपूर्वक उनसे कहा, “ख़ुदा से डर नहीं लगता, ख़ुदा का बनाया हुआ जीव मर रहा है और तुम बेवकूफ़ों की तरह ख़ुश हो रहे हो?” और जलती हुई शहतीर तक सीढ़ी लगाकर वह बिल्ली तक पहुँच गया. वह उसके उद्देश्य को समझ गई और धन्यवाद का भाव लिए तुरन्त उसकी बाँहों में कूद गई. अधजला लुहार उसके साथ नीचे उतरा. “अच्छा बच्चों, अलबिदा!” उसने हैरान-परेशान सेवकों से कहा, “अब मेरा यहाँ कोई काम नहीं है. ख़ुश रहो, मुझे बुरा न समझना.”

लुहार चला गया.आग कुछ देर और तांडव करती रही. आख़िरकार मंद पड़ गई, और दहकते कोयले के ढेर रात के अँधेरे में जलते रहे और उनके निकट किस्तेनेव्को के झुलसे हुए निवासी घूमते रहे.

Sunday, 20 January 2019

दुब्रोव्स्की - 05




अध्याय – 05


अंतिम संस्कार तीसरे दिन किया गया. बेचारे वृद्ध का शरीर मेज़ पर पड़ा था, कपड़े से ढँका हुआ, मोमबत्तियों से घिरा हुआ. भोजन-कक्ष लोगों से खचाखच भरा था. जनाज़ा उठाने की तैयारियाँ हो रही थीं. व्लादीमिर और तीन सेवकों ने ताबूत उठाया था. धर्मगुरू आगे-आगे चल रहा था, उसका सहायक अंतिम संस्कार के समय गाई जाने वाली प्रार्थनाएँ गाते हुए उसके साथ-साथ चल रहा था. किस्तेनेव्को का मालिक अन्तिम बार अपने घर की देहलीज़ लाँघ रहा था. ताबूत वन के रास्ते से ले जाया गया. गिरजाघर उसके पीछे ही था. दिन साफ़ एवम् ठण्डा था. शिशिर के पत्ते पेड़ों से झड़ रहे थे.

वन से बाहर निकलते ही सामने किस्तेनेव्को का लकड़ी से बना गिरजाघर एवम् कब्रिस्तान दिखाई दिए, जो पुराने चीड़ के वृक्षों से घिरे थे. वहाँ व्लादीमिर की माता का शरीर चिरनिद्रा में सो रहा था, उसी की कब्र की बगल में ही एक नया गड्ढा खोदकर रखा गया था.

गिरजाघर किस्तेनेव्को के किसानों से भरा था, जो अपने मालिक को अन्तिम प्रणाम करने आए थे. युवा दुब्रोस्की प्रार्थना गाने वाले वृन्द के निकट खड़ा था, वह न तो रो रहा था और न ही प्रार्थना कर रहा था – मगर उसका चेहरा डरावना हो रहा था. शोकपूर्ण विधि पूरी हुई. सबसे पहले व्लादीमिर ने मृत शरीर से बिदा ली, उसका अनुसरण सभी नौकर-चाकरों ने किया, ताबूत पर ढक्कन रखकर कीलों से ठोंक दिया गया. औरतें ज़ोर से रो पड़ीं, आदमी बीच-बीच में मुट्ठी से आँसू पोंछते जाते. व्लादीमिर और वे ही तीन सेवक पूरे गाँव समेत उसे कब्रिस्तान ले गए. ताबूत को कब्र में उतारा गया, सभी उपस्थितों ने उस पर मुट्ठी-मुट्ठी रेत डाली, गड्ढे को ऊपर तक भर दिया गया, उसके सामने झुककर सबने प्रणाम किया और तितर-बितर हो गए. व्लादीमिर फ़ौरन वहाँ से दूर हट गया, सबको पीछे छोड़ता हुआ वह किस्तेनेव्को के वन में छिप गया.

इगोरोव्ना ने उसकी तरफ़ से प्रमुख पादरी एवम् गिरजाघर के सभी सेवकों को अन्तिम संस्कार के पश्चात् भोज पर आमंत्रित किया और यह घोषणा की कि युवा मालिक भोज पर उपस्थित नहीं रहेंगे, और इस तरह फ़ादर अन्तोन, मदर फ़ेदोतोव्ना और सहायक पैदल ही मालिक के घर की तरफ़ चले, चलते-चलते वे इगोरोव्ना के साथ मृतक की भलमनसाहत के बारे में बातें कर रहे थे, और यह भी अटकलें लगा रहे थे कि उसके वारिस को किन मुसीबतों से जूझना पड़ सकता है. (त्रोएकूरव के आगमन एवम् उसके साथ किए गए व्यवहार का अब तक पूरी बस्ती को पता चल चुका था, और स्थानीय राजनीतिज्ञों की राय में इसके महत्वपूर्ण परिणाम होने की आशंका थी).                   
“जो होगा, सो होगा”, मदर फेदोतोव्ना बोली, “और यदि व्लादीमिर अन्द्रेयेविच हमारा मालिक नहीं बना, तो यह बड़े अफ़सोस की बात होगी. बहादुर है वह, इसमें कोई शक नहीं.”

“वे नहीं तो और कौन हमारे मालिक बनेंगे,” इगोरोव्ना बात काटते हुए बोली. “किरीला पेत्रोविच बेकार ही में क्रोधित हो रहे हैं. डरपोक से पाला नहीं पड़ा है; मेरा दुलारा ख़ुद ही अपनी हिफ़ाज़त कर सकता है, और ख़ुदा ने चाहा, तो शुभचिन्तक भी उसे नहीं छोडेंगे. किरीला पेत्रोविच बड़ा बदतमीज़ है, मगर जब मेरे ग्रीश्का ने चिल्लाकर कहा, ‘भाग जा, बूढ़े कुत्ते! दफ़ा हो जा यहाँ से!तो उन्होंने दुम दबा ली.”

“ऐ, इगोरोव्ना,” सहायक बोला, “ग्रिगोरी की ज़ुबान कैसे चली, मैं तो स्वीकार करता हूँ, कि किरीला पेत्रोविच पर टेढ़ी नज़र डालने के बदले, शायद मालिक पर ही भौंकने लगता. उसे देखते ही भय, घबराहट, पसीना छूटने लगता है, कमर तो अपने आप झुकने लगती है, झुकती ही जाती है...”

“जैसे को तैसा”, फ़ादर ने कहा, “किरीला पेत्रोविच के लिए भी चिर-स्मृतिगाएँगे, जैसे कि आज अन्द्रेइ गवरीलविच के लिए गाई गई, यहाँ अन्तिम यात्रा बड़ी धूमधाम से निकालेंगे और मेहमान भी खूब होंगे, मगर ख़ुदा के लिए तो सब बराबर ही हैं.”

“आह, भाई! हम भी पूरी बस्ती को बुलाना चाह रहे थे, मगर व्लादीमिर अन्द्रेयेविच नहीं चाहते थे. हमारे पास ख़ुदा की मेहेरबानी से किसी बात की कमी नहीं है, जो चाहो वही पेश कर सकते हैं. फिर भी, सब लोग नहीं हैं, तो कम-से-कम आपका तो दिल खोलकर स्वागत करूँगी ही, प्यारे मेहमानों.”

इस प्यार भरे आश्वासन और बढ़िया केक मिलने की आशा से बातचीत करने वालों के कदम तेज़ी से पड़ने लगे, और वह सही-सलामत मालिक के घर पहुँच गए, जहाँ मेज़ सजी हुई थी, और वोद्का के जाम भी तैयार थे.

इस दौरान अपने घायल एवम् अपमानित मन की चोट को गति एवम् थकान द्वारा भुलाने के उद्देश्य से व्लादीमिर घने वृक्षों के झुरमुट में गहरे घुस गया. रास्ते पर ज़रा भी ध्यान दिए बिना वह चलता रहा, काँटे हर पल उसके पैरों में चुभते और उन्हें खरोंचते, हर पल उसका पैर दलदल में धँसता, उसे किसी बात का होश नहीं था. आख़िरकार उसे एक छोटा-सा गड्ढ़ा दिखाई दिया, जो चारों ओर जंगल से घिरा था, शिशिर से अधनंग़े हुए पेड़ों के निकट से छोटी-सी नदी ख़ामोशी से बह रही थी. व्लादीमिर रुक गया, ठण्ड़ी ज़मीन पर बैठ गया और उसके दिल में नैराश्यपूर्ण विचारों का जमघट लग गया..उसे बड़ी तीव्रता से अपने अकेलेपन का एहसास हुआ. भविष्य काले तूफ़ानी बादलों से ढँका था उसके लिए. त्रोएकूरव के साथ हुई शत्रुता से नई विपत्तियों के आने का ख़तरा था. उसकी छोटी-सी सम्पत्ति उसके हाथों से निकलकर पराए हाथों में जानेवाली थी, इस हालत में निर्धनता उसकी राह देख रही थी. वह बड़ी देर तक उसी जगह पर निश्चल बैठा रहा, नदी की ख़ामोश धारा को देखता हुआ, जो कुछ बदरंग पत्ते अपने साथ बहा ले जा रही थी और बड़ी ख़ूबसूरती से जीवन-धारा के साथ अपने तादात्म्य का ज्ञान उसे करा रही थी, इतने साधारण-से तादात्म्य का. आख़िर उसे ख़याल आया कि अँधेरा होने लगा है, वह उठा और घर का रास्ता ढूँढ़ने लगा, मगर जानी-पहचानी पगडंडी पर आने से पहले काफ़ी देर तक जंगल में भटकना पड़ा, यही पगडंडी सीधे उसे अपने घर के द्वार तक ले गई.

दुब्रोव्स्की के सामने पड़ा फ़ादर अपने सभी कर्मचारियों के साथ. बुरे शगुन का ख़याल उसके दिमाग़ में झाँक गया. वह बेदिली से एक ओर हो गया और पेड़ के पीछे छिप गया. उन्होंने उसे देखा नहीं, और उसके निकट से गुज़रते हुए वे बड़े तैश से बातें करते रहे.

“बुराई से दूर रहो और भलाई करो”, फ़ादर ने मदर से कहा, “हमारे यहाँ रहने में अब कोई तुक नहीं है. इसका अंजाम जो भी हो, उससे तुम्हें कोई मतलब नहीं.” मदर ने जवाब में कुछ कहा, मगर व्लादीमिर उसे सुन न सका.

घर के निकट आने पर उसने कई लोगों को देखा. किसान एवम् बंधुआ मज़दूर मालिक के आँगन में भीड़ लगाए खड़े थे. दूर से व्लादीमिर को असाधारण शोरगुल सुनाई दिया. भण्डार के पास दो गाड़ियाँ खड़ी थीं. ड्योढ़ी में कुछ अपरिचित लोग थे – वर्दी पहने, शायद वे किसी बात पर विचार-विमर्श कर रहे थे.

“इसका क्या मतलब है?” उसने गुस्से में अन्तोन से पूछा, जो भागता हुआ उसकी ओर आ रहा था. “ये लोग कौन हैं और क्या चाहते हैं?”

“ओह, मालिक व्लादीमिर अन्द्रेयेविच,” बूढ़े ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “अदालत आई है. हमें त्रोएकूरव के हवाले कर रहे हैं, तुम्हारा कृपाछत्र हमसे छीन रहे हैं.”

व्लादीमिर ने सिर झुका लिया, उसकी प्रजा अपने अभागे मालिक को घेरकर खड़ी हो गई. “माई-बाप तुम हमारे”, उसके हाथों को चूमते हुए वे चीख़े, “हमें दूसरा मालिक नहीं चाहिए, तुम्हारे सिवा और कोई नहीं चाहिए, तुम इजाज़त तो दो मालिक, अदालत से हम निपट लेंगे. मर जाएँगे, मगर हार नहीं मानेंगे. व्लादीमिर ने उनकी ओर देखा, और अजीब से ख़यालात उसे परेशान करने लगे. “शान्ति से खड़े रहो,” उसने उनसे कहा, “मैं उन लोगों से बात करता हूँ.”

“बात करो, मालिक,” भीड़ ने चिल्लाकर कहा, “इन बेवकूफ़ों को समझाओ.”

व्लादीमिर कर्मचारियों के निकट गया. सिर पर टोप पहने शबाश्किन कूल्हों पर हाथ रखे खड़ा था और बड़े घमंड से चारों ओर देख रहा था. लम्बे और मोटे पचास वर्षीय, लाल मुँह वाले, मूँछोंवाले पुलिस कप्तान ने निकट आते दुब्रोव्स्की को देखकर गला साफ़ किया और भर्राई आवाज़ में बोला, “तो, मैं आपके लिए फिर से वही दोहराता हूँ, जो पहले ही कह चुका हूँ – जिले की अदालत के निर्णयानुसार आज से आप किरीला पेत्रोविच त्रोएकूरव के अधीन हो गए हैं, जिसका प्रतिनिधित्व यहाँ शबाश्किन कर रहे हैं. उसकी हर आज्ञा का पालन करो, चाहे जो भी कहे – मानो; और तुम, लुगाइयों, उसकी इज़्ज़त करो और उसे प्यार करो, और वह तुम लोगों का बड़ा शौकीन है.” इस तीखे व्यंग्य को कहते हुए पुलिस कप्तान ठहाका मारकर हँस पड़ा, और शबाश्किन के साथ-साथ अन्य सदस्यों ने भी उसका अनुसरण किया.

“कृपया यह बताने का कष्ट करें कि यह सब क्या है,” उसने बनावटी ठण्डेपन से पुलिस कप्तान से पूछा. “इसका मतलब यह है कि,”…एक गम्भीर दिखने वाले कर्मचारी ने उत्तर दिया, “हम यह सब किरीला पेत्रोविच त्रोएकूरव के अधिकार में लेने आए हैं और गैरों से प्रार्थना करते हैं, कि अपनी भलाई चाहते हैं तो यहाँ से दूर ही रहें.”

“मगर, शायद, मेरे किसानों से मुख़ातिब होने से पहले आप मुझसे तो बात कर सकते थे, ज़मीन्दार के सत्ता से वंचित होने संबंधी घोषणा कर सकते थे...”

“और तुम हो कौन?” शबाश्किन ने तीखी नज़रों से उसे देखते हुए कहा, “भूतपूर्व ज़मीन्दार अन्द्रेइ गावरीलविच दुब्रोव्स्की ख़ुदा की मर्ज़ी से चल बसे, हम आपको जानते नहीं और जानना भी नहीं चाहते.”

“ये हमारे युवा मालिक व्लादीमिर अन्द्रेयेविच दुब्रोव्स्की हैं,” भीड़ में से आवाज़ आई.           

“किसने मुँह खोलने की हिम्मत की है,” पुलिस कप्तान गरजा, “कैसा मालिक, कैसा व्लादीमिर अन्द्रेयेविच? तुम्हारा मालिक है किरीला पेत्रोविच त्रोएकूरव, सुनते हो, बेवकूफ़ो?”

“ऐसा नहीं हो सकता,” उसी आवाज़ ने कहा.

“आहा, यह बग़ावत है!” पुलिस कप्तान चीख़ा, “ए मुखिया, इधर आओ.”

मुखिया आगे आया.

“ढूँढ़ो तो उसे, जिसने मुझसे बात करने की जुर्रत की है, मैं उसे...”

मुखिया ने भीड़ की ओर देखकर पूछा कि कौन बोला था? मगर सब चुप रहे, जल्दी ही पिछली पंक्तियों में सुगबुगाहट होने लगी, जो शीघ्र ही बढ़ते-बढ़ते शोरगुल में बदल गई. पुलिस कप्तान आवाज़ चढ़ाकर उन्हें मनाने की कोशिश करने लगा.

“क्या देखते हो उसकी ओर”, नौकर चिल्लाए, “साथियों! ख़त्म करो उनको.”

और भीड़ आगे बढ़ने लगी. शबाश्किन और उसके साथी भाग कर ड्योढ़ी में घुस गए और दरवाज़ा बंद कर लिया.

“साथियों, बाँध दो”, वही आवाज़ चीखी, और भीड़ का दबाव बढ़ने लगा.

“बेवकूफ़ों, क्या कर रहे हो?” दुब्रोव्स्की चीखा, “अपने साथ-साथ मुझे भी मार डालोगे. अपने-अपने घर जाओ और मुझे अकेला छोड़ दो. डरो मत, सम्राट कृपालु हैं, मैं उनसे विनती करूँगा, वह हमें निराश नहीं करेंगे. हम सब उनके बच्चे हैं. मगर यदि तुम लोग विद्रोह और डाकेज़नी पर उतर आओगे तो वे हमारी सहायता कैसे करेंगे?”

युवा दुब्रोव्स्की के भाषण, उसकी खनखनाती आवाज़ एवम् उसके शानदार व्यक्तित्व ने वांछित प्रभाव डाला. लोग शान्त हो गए, बिखर गए, आँगन खाली हो गया. सदस्य ड्योढ़ी में बैठे थे. आख़िर शबाश्किन ने धीरे से दरवाज़ा खोला, बाहर दालान में आया और झुककर सलाम करते हुए दुब्रोव्स्की को उसके दयालु व्यवहार के लिए धन्यवाद देने लगा. दुब्रोव्स्की घृणा से उसकी बात सुनता रहा, मगर उसने कोई उत्तर न दिया.

“हमने तय किया है,” पुलिस कप्तान ने कहा, “कि आपकी इजाज़त से रात यहीं गुज़ारेंगे, क्योंकि अँधेरा हो चुका है और आपके कारिन्दे रास्ते में हम पर आक्रमण कर सकते हैं. कृपया इतनी मेहेरबानी कीजिए, मेहमानखाने में हमारे लिए कुछ सूखी घास भिजवा दीजिए, जैसे ही उजाला होगा, हम अपने घर चले जाएँगे.”

“जो चाहे कीजिए,” उसने रुखाई से जवाब दिया, “मैं अब यहाँ मालिक नहीं हूँ,” इतना कहकर वह अपने पिता के कमरे की ओर चला गया, जाते-जाते अपने पीछे दरवाज़ा बन्द करता गया.