अध्याय
– 05
अंतिम संस्कार तीसरे दिन किया गया. बेचारे
वृद्ध का शरीर मेज़ पर पड़ा था,
कपड़े से ढँका हुआ, मोमबत्तियों से घिरा हुआ.
भोजन-कक्ष लोगों से खचाखच भरा था. जनाज़ा उठाने की तैयारियाँ हो रही थीं. व्लादीमिर
और तीन सेवकों ने ताबूत उठाया था. धर्मगुरू आगे-आगे चल रहा था, उसका सहायक अंतिम संस्कार के समय गाई जाने वाली प्रार्थनाएँ गाते हुए उसके
साथ-साथ चल रहा था. किस्तेनेव्को का मालिक अन्तिम बार अपने घर की देहलीज़ लाँघ रहा
था. ताबूत वन के रास्ते से ले जाया गया. गिरजाघर उसके पीछे ही था. दिन साफ़ एवम्
ठण्डा था. शिशिर के पत्ते पेड़ों से झड़ रहे थे.
वन से बाहर निकलते ही सामने किस्तेनेव्को का
लकड़ी से बना गिरजाघर एवम् कब्रिस्तान दिखाई दिए, जो पुराने चीड़ के वृक्षों से घिरे थे. वहाँ व्लादीमिर की
माता का शरीर चिरनिद्रा में सो रहा था, उसी की कब्र की बगल
में ही एक नया गड्ढा खोदकर रखा गया था.
गिरजाघर किस्तेनेव्को के किसानों से भरा था, जो अपने मालिक को अन्तिम
प्रणाम करने आए थे. युवा दुब्रोस्की प्रार्थना गाने वाले वृन्द के निकट खड़ा था,
वह न तो रो रहा था और न ही प्रार्थना कर रहा था – मगर उसका चेहरा
डरावना हो रहा था. शोकपूर्ण विधि पूरी हुई. सबसे पहले व्लादीमिर ने मृत शरीर से
बिदा ली, उसका अनुसरण सभी नौकर-चाकरों ने किया, ताबूत पर ढक्कन रखकर कीलों से ठोंक दिया गया. औरतें ज़ोर से रो पड़ीं,
आदमी बीच-बीच में मुट्ठी से आँसू पोंछते जाते. व्लादीमिर और वे ही
तीन सेवक पूरे गाँव समेत उसे कब्रिस्तान ले गए. ताबूत को कब्र में उतारा गया,
सभी उपस्थितों ने उस पर मुट्ठी-मुट्ठी रेत डाली, गड्ढे को ऊपर तक भर दिया गया, उसके सामने झुककर सबने
प्रणाम किया और तितर-बितर हो गए. व्लादीमिर फ़ौरन वहाँ से दूर हट गया, सबको पीछे छोड़ता हुआ वह किस्तेनेव्को के वन में छिप गया.
इगोरोव्ना ने उसकी तरफ़ से प्रमुख पादरी एवम्
गिरजाघर के सभी सेवकों को अन्तिम संस्कार के पश्चात् भोज पर आमंत्रित किया और यह
घोषणा की कि युवा मालिक भोज पर उपस्थित नहीं रहेंगे, और इस तरह फ़ादर अन्तोन, मदर
फ़ेदोतोव्ना और सहायक पैदल ही मालिक के घर की तरफ़ चले, चलते-चलते
वे इगोरोव्ना के साथ मृतक की भलमनसाहत के बारे में बातें कर रहे थे, और यह भी अटकलें लगा रहे थे कि उसके वारिस को किन मुसीबतों से जूझना पड़
सकता है. (त्रोएकूरव के आगमन एवम् उसके साथ किए गए व्यवहार का अब तक पूरी बस्ती को
पता चल चुका था, और स्थानीय राजनीतिज्ञों की राय में इसके
महत्वपूर्ण परिणाम होने की आशंका थी).
“जो होगा, सो होगा”, मदर फेदोतोव्ना बोली,
“और यदि व्लादीमिर अन्द्रेयेविच हमारा मालिक नहीं बना, तो यह बड़े अफ़सोस की बात होगी. बहादुर है वह, इसमें
कोई शक नहीं.”
“वे नहीं तो और कौन हमारे मालिक बनेंगे,” इगोरोव्ना बात काटते हुए
बोली. “किरीला पेत्रोविच बेकार ही में क्रोधित हो रहे हैं. डरपोक से पाला नहीं पड़ा
है; मेरा दुलारा ख़ुद ही अपनी हिफ़ाज़त कर सकता है, और ख़ुदा ने चाहा, तो शुभचिन्तक भी उसे नहीं छोडेंगे.
किरीला पेत्रोविच बड़ा बदतमीज़ है, मगर जब मेरे ग्रीश्का ने
चिल्लाकर कहा, ‘भाग जा, बूढ़े कुत्ते!
दफ़ा हो जा यहाँ से!’ तो उन्होंने दुम दबा ली.”
“ऐ, इगोरोव्ना,” सहायक बोला, “ग्रिगोरी की ज़ुबान कैसे चली, मैं तो स्वीकार करता
हूँ, कि किरीला पेत्रोविच पर टेढ़ी नज़र डालने के बदले,
शायद मालिक पर ही भौंकने लगता. उसे देखते ही भय, घबराहट, पसीना छूटने लगता है, कमर
तो अपने आप झुकने लगती है, झुकती ही जाती है...”
“जैसे को तैसा”, फ़ादर ने कहा, “किरीला पेत्रोविच के
लिए भी ‘चिर-स्मृति’ गाएँगे, जैसे कि आज अन्द्रेइ गवरीलविच के लिए गाई गई, यहाँ
अन्तिम यात्रा बड़ी धूमधाम से निकालेंगे और मेहमान भी खूब होंगे, मगर ख़ुदा के लिए तो सब बराबर ही हैं.”
“आह, भाई! हम भी पूरी बस्ती को बुलाना चाह रहे थे, मगर व्लादीमिर अन्द्रेयेविच नहीं चाहते थे. हमारे पास ख़ुदा की मेहेरबानी
से किसी बात की कमी नहीं है, जो चाहो वही पेश कर सकते हैं.
फिर भी, सब लोग नहीं हैं, तो कम-से-कम
आपका तो दिल खोलकर स्वागत करूँगी ही, प्यारे मेहमानों.”
इस प्यार भरे आश्वासन और बढ़िया केक मिलने की
आशा से बातचीत करने वालों के कदम तेज़ी से पड़ने लगे, और वह सही-सलामत मालिक के घर पहुँच गए, जहाँ मेज़ सजी हुई थी, और वोद्का के जाम भी तैयार थे.
इस दौरान अपने घायल एवम् अपमानित मन की चोट को
गति एवम् थकान द्वारा भुलाने के उद्देश्य से व्लादीमिर घने वृक्षों के झुरमुट में
गहरे घुस गया. रास्ते पर ज़रा भी ध्यान दिए बिना वह चलता रहा, काँटे हर पल उसके पैरों में चुभते
और उन्हें खरोंचते, हर पल उसका पैर दलदल में धँसता, उसे किसी बात का होश नहीं था. आख़िरकार उसे एक छोटा-सा गड्ढ़ा दिखाई दिया,
जो चारों ओर जंगल से घिरा था, शिशिर से अधनंग़े
हुए पेड़ों के निकट से छोटी-सी नदी ख़ामोशी से बह रही थी. व्लादीमिर रुक गया,
ठण्ड़ी ज़मीन पर बैठ गया और उसके दिल में नैराश्यपूर्ण विचारों का
जमघट लग गया..उसे बड़ी तीव्रता से अपने अकेलेपन का एहसास हुआ. भविष्य काले तूफ़ानी
बादलों से ढँका था उसके लिए. त्रोएकूरव के साथ हुई शत्रुता से नई विपत्तियों के
आने का ख़तरा था. उसकी छोटी-सी सम्पत्ति उसके हाथों से निकलकर पराए हाथों में
जानेवाली थी, इस हालत में निर्धनता उसकी राह देख रही थी. वह
बड़ी देर तक उसी जगह पर निश्चल बैठा रहा, नदी की ख़ामोश धारा
को देखता हुआ, जो कुछ बदरंग पत्ते अपने साथ बहा ले जा रही थी
और बड़ी ख़ूबसूरती से जीवन-धारा के साथ अपने तादात्म्य का ज्ञान उसे करा रही थी,
इतने साधारण-से तादात्म्य का. आख़िर उसे ख़याल आया कि अँधेरा होने लगा
है, वह उठा और घर का रास्ता ढूँढ़ने लगा, मगर जानी-पहचानी पगडंडी पर आने से पहले काफ़ी देर तक जंगल में भटकना पड़ा,
यही पगडंडी सीधे उसे अपने घर के द्वार तक ले गई.
दुब्रोव्स्की के सामने पड़ा फ़ादर अपने सभी
कर्मचारियों के साथ. बुरे शगुन का ख़याल उसके दिमाग़ में झाँक गया. वह बेदिली से एक
ओर हो गया और पेड़ के पीछे छिप गया. उन्होंने उसे देखा नहीं, और उसके निकट से गुज़रते हुए वे
बड़े तैश से बातें करते रहे.
“बुराई से दूर रहो और भलाई करो”, फ़ादर ने मदर से कहा, “हमारे यहाँ रहने में अब कोई तुक नहीं है. इसका अंजाम जो भी हो, उससे तुम्हें कोई मतलब नहीं.” मदर ने जवाब में कुछ कहा, मगर व्लादीमिर उसे सुन न सका.
घर के निकट आने पर उसने कई लोगों को देखा.
किसान एवम् बंधुआ मज़दूर मालिक के आँगन में भीड़ लगाए खड़े थे. दूर से व्लादीमिर को
असाधारण शोरगुल सुनाई दिया. भण्डार के पास दो गाड़ियाँ खड़ी थीं. ड्योढ़ी में कुछ
अपरिचित लोग थे – वर्दी पहने,
शायद वे किसी बात पर विचार-विमर्श कर रहे थे.
“इसका क्या मतलब है?” उसने गुस्से में अन्तोन से
पूछा, जो भागता हुआ उसकी ओर आ रहा था. “ये लोग कौन हैं और
क्या चाहते हैं?”
“ओह, मालिक व्लादीमिर अन्द्रेयेविच,” बूढ़े
ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “अदालत आई है. हमें त्रोएकूरव के
हवाले कर रहे हैं, तुम्हारा कृपाछत्र हमसे छीन रहे हैं.”
व्लादीमिर ने सिर झुका लिया, उसकी प्रजा अपने अभागे मालिक
को घेरकर खड़ी हो गई. “माई-बाप तुम हमारे”, उसके हाथों को
चूमते हुए वे चीख़े, “हमें दूसरा मालिक नहीं चाहिए, तुम्हारे सिवा और कोई नहीं चाहिए, तुम इजाज़त तो दो
मालिक, अदालत से हम निपट लेंगे. मर जाएँगे, मगर हार नहीं मानेंगे. व्लादीमिर ने उनकी ओर देखा, और
अजीब से ख़यालात उसे परेशान करने लगे. “शान्ति से खड़े रहो,” उसने
उनसे कहा, “मैं उन लोगों से बात करता हूँ.”
“बात करो, मालिक,” भीड़ ने चिल्लाकर कहा,
“इन बेवकूफ़ों को समझाओ.”
व्लादीमिर कर्मचारियों के निकट गया. सिर पर टोप
पहने शबाश्किन कूल्हों पर हाथ रखे खड़ा था और बड़े घमंड से चारों ओर देख रहा था.
लम्बे और मोटे पचास वर्षीय,
लाल मुँह वाले, मूँछोंवाले पुलिस कप्तान ने
निकट आते दुब्रोव्स्की को देखकर गला साफ़ किया और भर्राई आवाज़ में बोला, “तो, मैं आपके लिए फिर से वही दोहराता हूँ, जो पहले ही कह चुका हूँ – जिले की अदालत के निर्णयानुसार आज से आप किरीला
पेत्रोविच त्रोएकूरव के अधीन हो गए हैं, जिसका प्रतिनिधित्व
यहाँ शबाश्किन कर रहे हैं. उसकी हर आज्ञा का पालन करो, चाहे
जो भी कहे – मानो; और तुम, लुगाइयों,
उसकी इज़्ज़त करो और उसे प्यार करो, और वह तुम
लोगों का बड़ा शौकीन है.” इस तीखे व्यंग्य को कहते हुए पुलिस कप्तान ठहाका मारकर
हँस पड़ा, और शबाश्किन के साथ-साथ अन्य सदस्यों ने भी उसका
अनुसरण किया.
“कृपया यह बताने का कष्ट करें कि यह सब क्या है,” उसने बनावटी ठण्डेपन से पुलिस
कप्तान से पूछा. “इसका मतलब यह है कि,”…एक गम्भीर दिखने वाले
कर्मचारी ने उत्तर दिया, “हम यह सब किरीला पेत्रोविच
त्रोएकूरव के अधिकार में लेने आए हैं और गैरों से प्रार्थना करते हैं, कि अपनी भलाई चाहते हैं तो यहाँ से दूर ही रहें.”
“मगर, शायद, मेरे किसानों से मुख़ातिब होने
से पहले आप मुझसे तो बात कर सकते थे, ज़मीन्दार के सत्ता से
वंचित होने संबंधी घोषणा कर सकते थे...”
“और तुम हो कौन?” शबाश्किन ने तीखी नज़रों से उसे देखते हुए कहा, “भूतपूर्व ज़मीन्दार अन्द्रेइ गावरीलविच दुब्रोव्स्की ख़ुदा की मर्ज़ी से चल
बसे, हम आपको जानते नहीं और जानना भी नहीं चाहते.”
“ये हमारे युवा मालिक व्लादीमिर अन्द्रेयेविच दुब्रोव्स्की
हैं,” भीड़ में से
आवाज़ आई.
“किसने मुँह खोलने की हिम्मत की है,” पुलिस
कप्तान गरजा, “कैसा मालिक, कैसा व्लादीमिर अन्द्रेयेविच? तुम्हारा मालिक है किरीला पेत्रोविच त्रोएकूरव, सुनते
हो, बेवकूफ़ो?”
“ऐसा नहीं हो सकता,” उसी आवाज़ ने कहा.
“आहा, यह बग़ावत है!” पुलिस कप्तान चीख़ा, “ए
मुखिया, इधर आओ.”
मुखिया आगे आया.
“ढूँढ़ो तो उसे, जिसने मुझसे बात करने की जुर्रत की है, मैं उसे...”
मुखिया ने भीड़ की ओर देखकर पूछा कि कौन बोला था? मगर सब चुप रहे, जल्दी ही पिछली पंक्तियों में सुगबुगाहट होने लगी, जो
शीघ्र ही बढ़ते-बढ़ते शोरगुल में बदल गई. पुलिस कप्तान आवाज़ चढ़ाकर उन्हें मनाने की
कोशिश करने लगा.
“क्या देखते हो उसकी ओर”, नौकर चिल्लाए, “साथियों! ख़त्म करो उनको.”
और भीड़ आगे बढ़ने लगी. शबाश्किन और उसके साथी
भाग कर ड्योढ़ी में घुस गए और दरवाज़ा बंद कर लिया.
“साथियों, बाँध दो”, वही आवाज़ चीखी, और भीड़ का दबाव बढ़ने लगा.
“बेवकूफ़ों, क्या कर रहे हो?” दुब्रोव्स्की चीखा,
“अपने साथ-साथ मुझे भी मार डालोगे. अपने-अपने घर जाओ और मुझे अकेला
छोड़ दो. डरो मत, सम्राट कृपालु हैं, मैं
उनसे विनती करूँगा, वह हमें निराश नहीं करेंगे. हम सब उनके बच्चे
हैं. मगर यदि तुम लोग विद्रोह और डाकेज़नी पर उतर आओगे तो वे हमारी सहायता कैसे
करेंगे?”
युवा दुब्रोव्स्की के भाषण, उसकी खनखनाती आवाज़ एवम् उसके
शानदार व्यक्तित्व ने वांछित प्रभाव डाला. लोग शान्त हो गए, बिखर
गए, आँगन खाली हो गया. सदस्य ड्योढ़ी में बैठे थे. आख़िर
शबाश्किन ने धीरे से दरवाज़ा खोला, बाहर दालान में आया और
झुककर सलाम करते हुए दुब्रोव्स्की को उसके दयालु व्यवहार के लिए धन्यवाद देने लगा.
दुब्रोव्स्की घृणा से उसकी बात सुनता रहा, मगर उसने कोई
उत्तर न दिया.
“हमने तय किया है,” पुलिस कप्तान ने कहा, “कि आपकी इजाज़त से रात यहीं गुज़ारेंगे, क्योंकि
अँधेरा हो चुका है और आपके कारिन्दे रास्ते में हम पर आक्रमण कर सकते हैं. कृपया
इतनी मेहेरबानी कीजिए, मेहमानखाने में हमारे लिए कुछ सूखी
घास भिजवा दीजिए, जैसे ही उजाला होगा, हम
अपने घर चले जाएँगे.”
“जो चाहे कीजिए,” उसने रुखाई से जवाब दिया, “मैं अब
यहाँ मालिक नहीं हूँ,” इतना कहकर वह अपने पिता के कमरे की ओर
चला गया, जाते-जाते अपने पीछे दरवाज़ा बन्द करता गया.