तुम और आप
खोखले ‘आप’को हार्दिक ‘तुम’ से
बिना कुछ कहे बदल दिया उसने
और सारे ख़ुशनुमा सपने
प्यार भरी मेरी रूह में जगा दिये उसने.
सोच में डूबा खड़ा हूँ उसके सामने,
उससे नज़रे हटाने का नहीं है साहस;
और कहता हूँ उससे: कितनी प्यारी हो तुम!
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चाहा तुम्हें, चाहत की आग अब भी शायद
मेरे दिल में बुझी नहीं पूरी,
पर न भड़काएँ तुम को अब ये शोले,
सौगात दर्द की तुम्हें न अब दूँगा .
चाहा तुझे ख़ामोशी से,
कभी डरते-डरते, कभी रश्क से जलते,
चाहा इतनी सचाई से, इतनी नज़ाकत से,
ख़ुदा करे कि रहो तुम औरों को भी यूँ ही प्यारे/
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