Monday, 20 August 2018

दुब्रोव्स्की - 03



अध्याय -03


कुछ समय बीता, मगर, बेचारे दुब्रोव्स्की की तबियत ख़राब ही रही; यह सच है, कि पागलपन के दौरे दुबारा नहीं पड़े, मगर उसकी कमज़ोरी बढ़ती गई. वह अपने पुराने शौक और काम भूलने लगा, कमरे से कभी-कभार ही बाहर निकलता और चौबीसों घण्टे सोच में डूबा रहता. ईगरोव्ना, सहृदय बुढ़िया, जो कभी उसके बेटे की आया थी, अब उसकी भी देखभाल करती. वह उसका यूँ ध्यान रखती, जैसे वह छोटा बच्चा हो, उसे खाने और सोने की याद दिलाती, उसे खाना खिलाती, बिस्तर में सुलाती. अन्द्रेइ गव्रीलविच हौले से उससे माफ़ी माँगता और उसके सिवा किसी और से बात तक न करता. वह अपनी परिस्थिति के बारे में सोचने की, जागीर सम्बंधी निर्देश देने की हालत में नहीं था, और ईगरोव्ना ने इस सारी स्थिति की ख़बर युवा दुब्रोव्स्की तक पहुँचाना आवश्यक समझा, जो पैदल सेना की टुकड़ी में कार्यरत था और इस समय पीटर्सबर्ग में था. तो, हिसाब-किताब वाले रजिस्टर से एक पन्ना फाड़कर उसने रसोइये ख़रितोन से, जो किस्तेनेव्को का एकमात्र पढ़ा-लिखा नौकर था, चिट्ठी लिखवाई और उसी दिन डाक से भेज दी.

मगर अब वकत आ गया है पाठकों को इस कहानी के असली नायक से परिचित करवाने का.

व्लादीमिर दुब्रोव्स्की सैनिक स्कूल से शिक्षा पाकर सेना का सब-लेफ्टिनेन्ट नियुक्त हुआ था, पिता उसके अच्छे रख-रखाव में कोई कंजूसी नहीं करते थे और इस नौजवान को घर से उम्मीद से भी ज़्यादा रकम प्राप्त होती थी. खर्चीले स्वभाव का और लोकप्रियता के पीछे भागनेवाला वह सभी महंगे शौक पाले हुए था, ताश खेला करता और कर्ज़ में डूबा रहता; भविष्य की चिंता किए बगैर, वह देर-सबेर अपने लिए एक धनी दुल्हन पाने के सपने देखा करता, जो अक्सर ग़रीब नौजवानों का सपना होता है.

एक दिन शाम को, जब उसके कमरे में कुछ अफ़सर सोफ़ों पर लेटे हुए सिगरेट पी रहे थे, उसके अर्दली ग्रीशा ने उसे एक ख़त दिया जिसकी लिखाई और सील को देखते ही नौजवान चौंक गया. उसने उसे फ़ौरन खोला और पढ़ा :

“मालिक हमारे, व्लादीमिर अन्द्रेयेविच, मैं तुम्हारी बूढ़ी आया, इस नतीजे पर पहुँची, कि तुम्हें तुम्हारे पिता के स्वास्थ्य के बारे में बता दूँ. वह बहुत बीमार हैं, कभी-कभार कुछ बोले तो बोले, वरना पूरा दिन गूँगे बच्चे की तरह बैठे रहते हैं, और जीने-मरने पर तो ईश्वर का ही बस चलता है. तुम यहाँ आ जाओ, मेरे लाड़ले, हम तुम्हारे लिए पेसोच्नोए पर घोड़े भेजेंगे. सुना है, कि जिले की अदालत हमें किरीला पेत्रोविच त्रोएकूरव के अधिकार में देने के लिए आ रही है – क्योंकि हम, शायद उनके हैं, मगर हम तो हमेशा से आपके हैं – और यह बात तो हमने आज तक सुनी नहीं. तुम, पीटर्सबर्ग में रहते हुए, ज़ार-हुज़ूर से यह बात कह सकते हो, तब वह हमें बदनामी से बचा लेते. हमेशा तुम्हारी ग़ुलाम, आया माँ,
- अरीना ईगरोव्ना बुज़ीरेवा

मेरे ग्रीशा को माँ की आशीष भेजती हूँ, तुम्हारी ख़िदमत तो अच्छी तरह से कर रहा है ना? दो हफ़्तों से यहाँ लगातार बारिश हो रही है, और चरवाहा रोद्या मिकोलिन-दिवस के आसपास मर गया.”

व्लादीमिर दुब्रोव्स्की इन बेतरतीबी से लिखी गई पंक्तियों को असाधारण बेचैनी से कई बार पढ़ गया. बचपन में ही उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी, और पिता को लगभग बिना जाने-समझे, आठ वर्ष की आयु में ही उसे पीटर्सबर्ग लाया गया था – वह पिता के साथ एक रूमानियत की भावना से जुड़ा था और पारिवारिक जीवन की मासूम ख़ुशियों को जितना कम उसने जाना था, उतनी ही उसके दिल में उनके प्रति चाह बढ़ती ही गई.

पिता को खो देने के विचार ने उसके दिल को व्यथित कर दिया, और अपनी आया माँ के ख़त से बेचारे मरीज़ का हाल जानकर वह बहुत भयभीत हो गया. उसने अपनी बुद्धू आया माँ और नौकरों के सहारे, उस छोटे से गाँव में छोड़े गए, किसी आपत्ति की आशंका से भयभीत एवम् बिना किसी सहायता के शारीरिक एवम् मानसिक पीड़ाओं के कारण पल-पल घुलते हुए अपने पिता की कल्पना की. व्लादीमिर ने उनकी उपेक्षा करने के अपराध के लिए स्वयम् को कोसा. काफ़ी दिनों से उसे पिता का कोई पत्र नहीं मिला था और उसने भी उनकी कोई खोज-ख़बर नहीं ली, यही सोचकर कि शायद गाँव से बाहर गए होंगे या पारिवारिक कामों में व्यस्त होंगे.

उसने निश्चय किया कि वह पिता के पास जाएगा और यदि उनके बिगड़ते हुए स्वास्थ्य के कारण उसकी उपस्थिति वहाँ आवश्यक हुई तो वह नौकरी छोड़ देगा. उसकी बेचैनी को भाँपकर मित्रगण चले गए. अकेला रह जाने पर व्लादीमिर ने छुट्टी के लिए दरख़्वास्त लिखी – पाइप के कश लगाते हुए गहरी सोच में डूब गया.

उसी दिन से वह छुट्टी मंज़ूर करवाने की कोशिश में लग गया और तीन दिन बाद वह लम्बी राह पर निकल पड़ा.

व्लादीमिर उस स्टेशन के निकट पहुँचा, जहाँ से उसे किस्तेनेव्को के लिए मुड़ना था. उसे दुखद पूर्वाभास हो रहे थे, दिल डर रहा था कि पिता को जीवित न पाएगा, उसने कल्पना की गाँव में उसकी राह देख रही पीड़ा भरी ज़िंदगी की, एकान्त की, निर्जनता की, ग़रीबी की, कामकाज की खिटखिट की जिनका उसे कोई ज्ञान नहीं था. डाकचौकी पर पहुँचकर वह मुंशी के पास पहुँचा और किराए पर घोड़े मांगे. मुंशी ने पूछा कि उसे कहाँ जाना है, और फिर कहा कि किस्तेनेव्को से भेजे गए घोड़े चार दिन से उसकी राह देख रहे हैं. शीघ्र ही व्लादीमिर के सामने आया बूढ़ा कोचवान अन्तोन, जो कभी उसे टट्टू पर घुमाया करता और उसके छोटे घोड़े की देखभाल किया करता था. उसे देखते ही अन्तोन की आँखें डबडबा गईं, ज़मीन तक झुककर उसे सलाम करते हुए वह बोला कि उसका बूढ़ा मालिक अभी जीवित है, और फ़ौरन घोड़े जोतने के लिए भागा. व्लादीमिर ने नाश्ता करने से इनकार कर दिया और तत्परता से घर के लिए रवाना हो गया. अन्तोन उसे टेढ़े-मेढ़े रास्तों से ले जा रहा था. रास्ते में उनकी बातचीत कुछ इस तरह होती रही:

“अन्तोन मुझे यह बताओ, कि मेरे पिता के त्रोएकूरव के साथ कैसे संबंध हैं?”

“ख़ुदा सब देखता है, मालिक व्लादीमिर अन्द्रेयेविच...मालिक की किरीला पेत्रोविच के साथ थोड़ी सी अनबन हो गई, और उसने फ़ौरन अदालत में मुकदमा ठोंक दिया – हालाँकि दोष उसीका है. मालिकों की बातों में दखल देना हम, गुलामों का काम नहीं है, मगर हे ख़ुदा, बेकार ही हमारे मालिक किरीला पेत्रोविच से उलझ पड़े, भला कहीं टहनी से कुल्हाड़ी टूटती है...”

“तो, ऐसा लगता है कि यह किरीला पेत्रोविच अपनी मनमानी करता है?”

“बिल्कुल, मालिक! ग्राम-प्रमुख को तो वह कौड़ी के मोल भी नहीं समझता, पुलिस कप्तान उसके यहाँ पानी भरता है. मालिक लोग उसे झुक-झुककर सलाम करते हुए आते हैं, यूँ कहिए कि नाँद रखो, तो सुअर आयेगा ही.”

“क्या यह सच है कि वह हमारी जायदाद छीन रहा है?”

“ओह! मालिक, सुना हमने भी यही है. कुछ ही दिन पहले पक्रोव्स्की के पादरी ने हमारे मुखिया के यहाँ बप्तिज़्मा पर कहा था – बहुत हो चुका घूमना-फिरना, किरीला पेत्रोविच अब तुम लोगों की अच्छी ख़बर लेंगे’. मिकिता लुहार ने कहा, “बस करो, सावेलिच, बंजारे को ग़म कैसा, मेहमान को चिंता कैसी! किरीला पेत्रोविच अलग हैं, और अन्द्रेइ गव्रीलविच अलग; और हम तो ऊपरवाले के और सम्राट के हैं, दूसरों का मुँह बंद तो नहीं किया जा सकता.”

“शायद तुम लोग त्रोएकूरव के अधिकार में नहीं जाना चाहते?”

“किरीला पेत्रोविच के अधिकार में! ख़ुदा बचाए, और उससे दूर रखे, उसके अपने ही लोग वहाँ इतना दुख उठाते हैं, और पराए जाएँगे, तो वह न सिर्फ उनकी खाल बल्कि माँस भी उधेड़ देगा. नहीं, ख़ुदा हमारे अन्द्रेइ गव्रीलविच को लम्बे समय तक तन्दुरुस्त रखे, और अगर ख़ुदा उन्हें अपने पास बुला भी ले, तो हमें तुम्हारे सिवा और कोई नहीं चाहिए, हमारे अन्नदाता. तुम हमें उसके हवाले न करना, और हम तुम्हारे पीछे खड़े हैं.” इतना कहकर अन्तोन ने चाबुक लहराते हुए लगाम खींची, और उसके घोड़े पूरी रफ़्तार से दौड़ने लगे.

बूढ़े कोचवान की वफ़ादारी ने दुब्रोव्स्की के मन को छू लिया और वह ख़ामोश होकर दुबारा सोच में पड़ गया. एक घण्टा बीतने के पश्चात् ग्रीशा के उद्गार से उसकी नींद टूटी, “यह है पक्रोव्स्कोए.” दुब्रोव्स्की ने सिर उठाया. वह एक विस्तीर्ण तालाब के किनारे से गुज़र रहा था, जिससे एक नदी निकलकर दूर पहाड़ियों में गुम हो गई थी, एक पहाड़ी पर घना हरा वन था, जिसमें से एक विशाल पाषाण निर्मित घर का गुम्बज़ झाँक रहा था, दूसरी पर था पंचकोणी गिरिजाघर और प्राचीन घण्टाघर, निकट ही बिखरी थीं झोंपड़ियाँ – अपनी बागडों और कुँओं सहित. दुब्रोव्स्की ने इन स्थानों को पहचाना, उसे याद आया कि इन्हीं पहाड़ियों पर वह नन्हीं माशा त्रोएकूरवा के संग खेला करता था, जो उससे दो वर्ष छोटी थी और तभी से सुंदर लगती थी. उसने अन्तोन से उसके बारे में जानना चाहा, मगर संकोचवश रुक गया.

ज़मीन्दार के घर के निकट जाने पर उसे उद्यान के पेड़ों के बीच से झलकती सफ़ेद पोषाक दिखाई दी. इसी समय अंतोन ने घोड़ों को चाबुक मारी और गाड़ीवानों तथा कोचवानों वाली स्वाभाविक अकड़ के साथ पूरी रफ़्तार से पुल पार करके गाँव के सामने से गुज़र गया. गाँव से बाहर आने पर वे पहाड़ी पर चले, और व्लादीमिर ने देखा बर्च के वृक्षों का वन और दाहिनी ओर खुले स्थान पर लाल छतवाला छोटा-सा भूरा मकान; उसका दिल उछलने लगा, वो अपने सामने देख रहा था किस्तेनेव्को और अपने पिता का साधारण-सा घर.

दस मिनट बाद वह ज़मींदार वाले आँगन में प्रविष्ट हुआ. उसने अवर्णनीय बेचैनी से अपने चारों ओर नज़र दौड़ाई. बारह वर्षों तक उसने अपनी मातृभूमि को नहीं देखा था. बर्च के वृक्ष, जो उसके सामने बाड़ के निकट लगाए ही गए थे, अब ऊँचे घने वृक्ष बन चुके थे. कभी तीन ख़ूबसूरत क्यारियों से सुसज्जित वह आँगन, जिनके मध्य से होकर चौड़ा, साफ़-सुथरा रास्ता जाता था, अब घास-फूस के चरागाह में परिवर्तित हो चुका था, जहाँ खूंटे से बंधा हुआ घोड़ा चर रहा था. कुत्ते भौंकने ही वाले थे, मगर अन्तोन को पहचानकर चुप रह गए और अपनी रोएँदार पूँछे हिलाने लगे. झोंपड़ियों से निकलकर बंधुआ मज़दूर बंधुआ मज़दूर बाहर आए और ख़ुशी से चिल्लाते हुए उन्होंने अपने नौजवान मालिक को घेर लिया. उनके घेरे को तोड़कर वह बड़ी मुश्किल से बाहर निकला और जीर्ण-शीर्ण द्वार की ओर भागा, ड्योढ़ी में ही उसका स्वागत ईगरोव्ना ने किया, जिसने रोते हुए अपने पाल्य को आलिंगन में भर लिया. “नमस्ते, नमस्ते, आया माँ” वह दुहराता रहा और अपनी भली बुढ़िया आया के सीने से चिपके हुए पूछा, “कैसे हैं पिता जी? कहाँ हैं वे?”

इसी क्षण मेहमानखाने में मुश्किल से पैर बढ़ाते हुए, ऊँचे कद का पीतवर्ण और कृश बूढ़ा, गाऊन और टोपी पहने प्रविष्ट हुआ.

“नमस्ते, वलोद्का!” उसने क्षीण आवाज़ में कहा और व्लादीमिर ने आवेग से अपने पिता को बाँहों में भर लिया. प्रसन्नता ने मरीज़ को झकझोर दिया, वह एकदम निढ़ाल हो गया, उसके पैर थरथराने लगे, और, वह गिर ही पड़ता यदि बेटे ने उसे थाम न लिया होता.

“तुम बिस्तर से उठे ही क्यों?” ईगरोव्ना उससे बोली, “पैरों में ताकत नहीं है, मगर वहीं घुसे चले आते हो जहाँ लोग होते हैं!”

बूढ़े को शयन-कक्ष में ले जाया गया. उसने बेटे के साथ बातचीत करने की कोशिश की, मगर विचारों का जमघट उसके दिमाग को हैरान किए दे रहा था और शब्द, बिना किसी तारतम्य के निकले पड़ रहे थे. वह एकदम चुप हो गया और बेहोशी के आलम में खो गया. व्लादीमिर उसकी हालत देखर सकते में आ गया. वह उसके शयन-कक्ष में ही रुक गया और उसने लोगों से प्रार्थना की, कि उसे पिता के साथ अकेले छोड़ दिया जाए, घर के नौकरों ने माफ़ी मांगी और तब सभी ने ग्रीशा को घेर लिया, उसे मेहमानखाने में खींच लाए, जहाँ ग्रामीण तरीके से, यथासंभव प्रसन्नता से उसका स्वागत किया गया और उसे अभिवादनों और सवालों से हैरान कर दिया.

Saturday, 4 August 2018

दुब्रोव्स्की - 02





अध्याय – 02


शहर में आकर अन्द्रेइ गव्रीलविच अपने एक परिचित व्यापारी के यहाँ रुका, वहाँ रात बिताकर सुबह जिले की अदालत पहुँचा. किसी ने भी उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. उसके पीछे-पीछे ही किरीला पेत्रोविच भी आया. मुंशी कानों में कलम फँसाए उठकर खड़े हो गए. अदालत के सभी सदस्य उससे बड़े तपाक से मिले, उसके पद, आयु एवम् डील-डौल का सम्मान करते हुए उसके लिए कुर्सियाँ पेश की गईं; वह खुले दरवाज़े के निकट बैठा – अन्द्रेइ गव्रीलविच दीवार का सहारा लेकर खड़ा था, तभी सचिव ने खनखनाती आवाज़ में अदालत का फ़ैसला पढ़ना शुरू किया.

यहाँ हम उसका सारांश दे रहे हैं. शायद आपको यह जानने में दिलचस्पी हो कि कानूनन किसी सम्पत्ति का स्वामी होने पर भी रूस में किसी को उससे किस तरह बेदखल किया जाता है.
सन् 18...के अक्टूबर माह की 27 तारीख को जिला अदालत ने पाया, कि सेना के लेफ़्टिनेन्ट अन्द्रेइ गव्रीलविच वल्द दुब्रोव्स्की द्वारा जनरल किरीला पेत्रोविच वल्द त्रोएकूरव की सम्पत्ति पर, जो ...प्रान्त के किस्तेनेव्को गाँव में है, …पुरुष कृषिदासों और खेतों एवम् खलिहानों वाली ...एकड़ भूमि पर ग़ैर कानूनी तरीके से कब्ज़ा कर लिया गया...

सारांश यह था कि किरीला पेत्रोविच के पिता स्वर्गीय प्योत्र एफ़ीमव ने यह सम्पत्ति 14 अगस्त 17को फ़ादेय ईगरोव स्पीत्सिन से खरीदी थी. किरीला पेत्रोविच किशोरावस्था से ही फ़ौजी सेवा में होने के कारण अक्सर युद्धों पर जाया करता. इसलिए उसे अपने पिता की मृत्यु के बारे में और उनके द्वारा छोड़ी गई सम्पत्ति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. और अब, सेना से निवृत्त होकर अपनी जागीर में लौटने पर उसे इस बात का ज्ञान हुआ, कि उसकी तमाम सम्पत्ति में से किस्तेनेव्को पर ज़मींदार दुब्रोव्स्की का अधिकार है. किस्तेनेव्को की ख़रीद-फ़रोख़्त से संबंधित कोई दस्तावेज़ न तो किरीला पेत्रोविच के पास है, और न ही अन्द्रेइ गव्रीलविच के पास. अतः अन्द्रेइ गव्रीलविच यह सिद्ध नहीं कर सकते कि उनके पिता को यह सम्पत्ति ईगर एफ़ीमव त्रोएकूरव द्वारा बेची गई थी.

अतः अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची, कि किस्तेनेव्को की जागीर पर अन्द्रेइ गव्रीलविच गैर कानूनी ढंग से कब्ज़ा जमाए हुए है. अदालत अन्द्रेइ गव्रीलविच को यह आदेश देती है कि वह किरीला पेत्रोविच को उसकी जागीर खेतों-खलिहानों समेत, तालाबों-पोखरों समेत, वनों-रास्तों समेत, कृषिदासों एवम् अन्य आबादी समेत और ज़मींदार के आवास समेत वापस लौटा दे.

सचिव ख़ामोश हो गया, ग्राम प्रमुख उठा और झुककर अभिवादन करते हुए उसने त्रोएकूरव को आदेश वाले दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा और त्रोएकूरव ने विजयोन्माद से झूमते हुए उसके हाथ से कलम ली और अदालत के आदेश पर प्रसन्नता जताते हुए दस्तख़त कर दिए.

अब बारी थी दुब्रोव्स्की की. सचिव उसके पास दस्तावेज़ ले गया. मगर दुब्रोव्स्की सिर झुकाए निश्चल खड़ा रहा.

सचिव ने उससे दुबारा हस्ताक्षर करते हुए अपनी पूर्ण सहमति अथवा संपूर्ण असहमति दर्शाने की प्रार्थना की. यदि उसकी अंतरात्मा यह कहती है, कि उसका पक्ष सही है और वह कानूनन तय की गई समयावधि के भीतर ऊपरी अदालत में मामले पर पुनर्विचार की प्रार्थना करना चाहे तो अपनी असहमति दर्शाए. दुब्रोव्स्की ख़ामोश ही रहा...अचानक उसने सिर उठाया, उसकी आँखें चमक रही थीं, उसने पैर पटकते हुए सचिव को इतनी ज़ोर से धक्का दिया कि वह गिर पड़ा, और, स्याही की दवात उठाकर ग्राम प्रमुख के मुँह पर दे मारी. सभी सकते में आ गए.

“मजाल तो देखो! ईश्वर के गिरजे का भी लिहाज नहीं! भाग जाओ, गुण्डों की जमात!”

फिर वह किरीला पेत्रोविच से मुख़ातिब होते हुए बोला, “सुन लिया फ़ैसला, हुज़ूरे आला,” वह कहता गया, “कुत्तों के नौकर कुत्तों को गिरजाघर के अंदर ले आए हैं! कुत्ते दौड़ रहे हैं ईश्वर के गिरजे में! मैं तुम्हें सिखाऊँगा...”

शोर सुनकर संतरी भागे-भागे आए और बड़ी मुश्किल से उस पर काबू पा सके. उसे ज़बर्दस्ती ले जाकर गाड़ी में बिठा दिया गया. त्रोएकूरव उसके पीछे-पीछे ही बाहर निकला, सभी न्यायाधीशों से घिरा हुआ. दुब्रोव्स्की के अचानक पागल हो जाने का उस पर गहरा असर हुआ था और उसकी सारी ख़ुशी रफ़ू-चक्कर हो गई.

उससे धन्यवाद और मेहेरबानियों की आशा रखने वाले न्यायाधीशों को उससे अभिवादन का एक शब्द भी नहीं मिला. वह उसी दिन पक्रोव्स्कोए चला गया.

इस दौरान दुब्रोव्स्की बिस्तर पर पड़ा रहा, जिले के डॉक्टर ने, जो सौभाग्यवश नौसिखिया नहीं था, उसे खून चढ़ाया. शाम तक उसकी तबियत काफ़ी संभल गई, मरीज़ सामान्य हो गया. दूसरे दिन उसे किस्तेनेव्को ले जाया गया, जो अब उसका नहीं था.