Monday, 20 August 2018

दुब्रोव्स्की - 03



अध्याय -03


कुछ समय बीता, मगर, बेचारे दुब्रोव्स्की की तबियत ख़राब ही रही; यह सच है, कि पागलपन के दौरे दुबारा नहीं पड़े, मगर उसकी कमज़ोरी बढ़ती गई. वह अपने पुराने शौक और काम भूलने लगा, कमरे से कभी-कभार ही बाहर निकलता और चौबीसों घण्टे सोच में डूबा रहता. ईगरोव्ना, सहृदय बुढ़िया, जो कभी उसके बेटे की आया थी, अब उसकी भी देखभाल करती. वह उसका यूँ ध्यान रखती, जैसे वह छोटा बच्चा हो, उसे खाने और सोने की याद दिलाती, उसे खाना खिलाती, बिस्तर में सुलाती. अन्द्रेइ गव्रीलविच हौले से उससे माफ़ी माँगता और उसके सिवा किसी और से बात तक न करता. वह अपनी परिस्थिति के बारे में सोचने की, जागीर सम्बंधी निर्देश देने की हालत में नहीं था, और ईगरोव्ना ने इस सारी स्थिति की ख़बर युवा दुब्रोव्स्की तक पहुँचाना आवश्यक समझा, जो पैदल सेना की टुकड़ी में कार्यरत था और इस समय पीटर्सबर्ग में था. तो, हिसाब-किताब वाले रजिस्टर से एक पन्ना फाड़कर उसने रसोइये ख़रितोन से, जो किस्तेनेव्को का एकमात्र पढ़ा-लिखा नौकर था, चिट्ठी लिखवाई और उसी दिन डाक से भेज दी.

मगर अब वकत आ गया है पाठकों को इस कहानी के असली नायक से परिचित करवाने का.

व्लादीमिर दुब्रोव्स्की सैनिक स्कूल से शिक्षा पाकर सेना का सब-लेफ्टिनेन्ट नियुक्त हुआ था, पिता उसके अच्छे रख-रखाव में कोई कंजूसी नहीं करते थे और इस नौजवान को घर से उम्मीद से भी ज़्यादा रकम प्राप्त होती थी. खर्चीले स्वभाव का और लोकप्रियता के पीछे भागनेवाला वह सभी महंगे शौक पाले हुए था, ताश खेला करता और कर्ज़ में डूबा रहता; भविष्य की चिंता किए बगैर, वह देर-सबेर अपने लिए एक धनी दुल्हन पाने के सपने देखा करता, जो अक्सर ग़रीब नौजवानों का सपना होता है.

एक दिन शाम को, जब उसके कमरे में कुछ अफ़सर सोफ़ों पर लेटे हुए सिगरेट पी रहे थे, उसके अर्दली ग्रीशा ने उसे एक ख़त दिया जिसकी लिखाई और सील को देखते ही नौजवान चौंक गया. उसने उसे फ़ौरन खोला और पढ़ा :

“मालिक हमारे, व्लादीमिर अन्द्रेयेविच, मैं तुम्हारी बूढ़ी आया, इस नतीजे पर पहुँची, कि तुम्हें तुम्हारे पिता के स्वास्थ्य के बारे में बता दूँ. वह बहुत बीमार हैं, कभी-कभार कुछ बोले तो बोले, वरना पूरा दिन गूँगे बच्चे की तरह बैठे रहते हैं, और जीने-मरने पर तो ईश्वर का ही बस चलता है. तुम यहाँ आ जाओ, मेरे लाड़ले, हम तुम्हारे लिए पेसोच्नोए पर घोड़े भेजेंगे. सुना है, कि जिले की अदालत हमें किरीला पेत्रोविच त्रोएकूरव के अधिकार में देने के लिए आ रही है – क्योंकि हम, शायद उनके हैं, मगर हम तो हमेशा से आपके हैं – और यह बात तो हमने आज तक सुनी नहीं. तुम, पीटर्सबर्ग में रहते हुए, ज़ार-हुज़ूर से यह बात कह सकते हो, तब वह हमें बदनामी से बचा लेते. हमेशा तुम्हारी ग़ुलाम, आया माँ,
- अरीना ईगरोव्ना बुज़ीरेवा

मेरे ग्रीशा को माँ की आशीष भेजती हूँ, तुम्हारी ख़िदमत तो अच्छी तरह से कर रहा है ना? दो हफ़्तों से यहाँ लगातार बारिश हो रही है, और चरवाहा रोद्या मिकोलिन-दिवस के आसपास मर गया.”

व्लादीमिर दुब्रोव्स्की इन बेतरतीबी से लिखी गई पंक्तियों को असाधारण बेचैनी से कई बार पढ़ गया. बचपन में ही उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी, और पिता को लगभग बिना जाने-समझे, आठ वर्ष की आयु में ही उसे पीटर्सबर्ग लाया गया था – वह पिता के साथ एक रूमानियत की भावना से जुड़ा था और पारिवारिक जीवन की मासूम ख़ुशियों को जितना कम उसने जाना था, उतनी ही उसके दिल में उनके प्रति चाह बढ़ती ही गई.

पिता को खो देने के विचार ने उसके दिल को व्यथित कर दिया, और अपनी आया माँ के ख़त से बेचारे मरीज़ का हाल जानकर वह बहुत भयभीत हो गया. उसने अपनी बुद्धू आया माँ और नौकरों के सहारे, उस छोटे से गाँव में छोड़े गए, किसी आपत्ति की आशंका से भयभीत एवम् बिना किसी सहायता के शारीरिक एवम् मानसिक पीड़ाओं के कारण पल-पल घुलते हुए अपने पिता की कल्पना की. व्लादीमिर ने उनकी उपेक्षा करने के अपराध के लिए स्वयम् को कोसा. काफ़ी दिनों से उसे पिता का कोई पत्र नहीं मिला था और उसने भी उनकी कोई खोज-ख़बर नहीं ली, यही सोचकर कि शायद गाँव से बाहर गए होंगे या पारिवारिक कामों में व्यस्त होंगे.

उसने निश्चय किया कि वह पिता के पास जाएगा और यदि उनके बिगड़ते हुए स्वास्थ्य के कारण उसकी उपस्थिति वहाँ आवश्यक हुई तो वह नौकरी छोड़ देगा. उसकी बेचैनी को भाँपकर मित्रगण चले गए. अकेला रह जाने पर व्लादीमिर ने छुट्टी के लिए दरख़्वास्त लिखी – पाइप के कश लगाते हुए गहरी सोच में डूब गया.

उसी दिन से वह छुट्टी मंज़ूर करवाने की कोशिश में लग गया और तीन दिन बाद वह लम्बी राह पर निकल पड़ा.

व्लादीमिर उस स्टेशन के निकट पहुँचा, जहाँ से उसे किस्तेनेव्को के लिए मुड़ना था. उसे दुखद पूर्वाभास हो रहे थे, दिल डर रहा था कि पिता को जीवित न पाएगा, उसने कल्पना की गाँव में उसकी राह देख रही पीड़ा भरी ज़िंदगी की, एकान्त की, निर्जनता की, ग़रीबी की, कामकाज की खिटखिट की जिनका उसे कोई ज्ञान नहीं था. डाकचौकी पर पहुँचकर वह मुंशी के पास पहुँचा और किराए पर घोड़े मांगे. मुंशी ने पूछा कि उसे कहाँ जाना है, और फिर कहा कि किस्तेनेव्को से भेजे गए घोड़े चार दिन से उसकी राह देख रहे हैं. शीघ्र ही व्लादीमिर के सामने आया बूढ़ा कोचवान अन्तोन, जो कभी उसे टट्टू पर घुमाया करता और उसके छोटे घोड़े की देखभाल किया करता था. उसे देखते ही अन्तोन की आँखें डबडबा गईं, ज़मीन तक झुककर उसे सलाम करते हुए वह बोला कि उसका बूढ़ा मालिक अभी जीवित है, और फ़ौरन घोड़े जोतने के लिए भागा. व्लादीमिर ने नाश्ता करने से इनकार कर दिया और तत्परता से घर के लिए रवाना हो गया. अन्तोन उसे टेढ़े-मेढ़े रास्तों से ले जा रहा था. रास्ते में उनकी बातचीत कुछ इस तरह होती रही:

“अन्तोन मुझे यह बताओ, कि मेरे पिता के त्रोएकूरव के साथ कैसे संबंध हैं?”

“ख़ुदा सब देखता है, मालिक व्लादीमिर अन्द्रेयेविच...मालिक की किरीला पेत्रोविच के साथ थोड़ी सी अनबन हो गई, और उसने फ़ौरन अदालत में मुकदमा ठोंक दिया – हालाँकि दोष उसीका है. मालिकों की बातों में दखल देना हम, गुलामों का काम नहीं है, मगर हे ख़ुदा, बेकार ही हमारे मालिक किरीला पेत्रोविच से उलझ पड़े, भला कहीं टहनी से कुल्हाड़ी टूटती है...”

“तो, ऐसा लगता है कि यह किरीला पेत्रोविच अपनी मनमानी करता है?”

“बिल्कुल, मालिक! ग्राम-प्रमुख को तो वह कौड़ी के मोल भी नहीं समझता, पुलिस कप्तान उसके यहाँ पानी भरता है. मालिक लोग उसे झुक-झुककर सलाम करते हुए आते हैं, यूँ कहिए कि नाँद रखो, तो सुअर आयेगा ही.”

“क्या यह सच है कि वह हमारी जायदाद छीन रहा है?”

“ओह! मालिक, सुना हमने भी यही है. कुछ ही दिन पहले पक्रोव्स्की के पादरी ने हमारे मुखिया के यहाँ बप्तिज़्मा पर कहा था – बहुत हो चुका घूमना-फिरना, किरीला पेत्रोविच अब तुम लोगों की अच्छी ख़बर लेंगे’. मिकिता लुहार ने कहा, “बस करो, सावेलिच, बंजारे को ग़म कैसा, मेहमान को चिंता कैसी! किरीला पेत्रोविच अलग हैं, और अन्द्रेइ गव्रीलविच अलग; और हम तो ऊपरवाले के और सम्राट के हैं, दूसरों का मुँह बंद तो नहीं किया जा सकता.”

“शायद तुम लोग त्रोएकूरव के अधिकार में नहीं जाना चाहते?”

“किरीला पेत्रोविच के अधिकार में! ख़ुदा बचाए, और उससे दूर रखे, उसके अपने ही लोग वहाँ इतना दुख उठाते हैं, और पराए जाएँगे, तो वह न सिर्फ उनकी खाल बल्कि माँस भी उधेड़ देगा. नहीं, ख़ुदा हमारे अन्द्रेइ गव्रीलविच को लम्बे समय तक तन्दुरुस्त रखे, और अगर ख़ुदा उन्हें अपने पास बुला भी ले, तो हमें तुम्हारे सिवा और कोई नहीं चाहिए, हमारे अन्नदाता. तुम हमें उसके हवाले न करना, और हम तुम्हारे पीछे खड़े हैं.” इतना कहकर अन्तोन ने चाबुक लहराते हुए लगाम खींची, और उसके घोड़े पूरी रफ़्तार से दौड़ने लगे.

बूढ़े कोचवान की वफ़ादारी ने दुब्रोव्स्की के मन को छू लिया और वह ख़ामोश होकर दुबारा सोच में पड़ गया. एक घण्टा बीतने के पश्चात् ग्रीशा के उद्गार से उसकी नींद टूटी, “यह है पक्रोव्स्कोए.” दुब्रोव्स्की ने सिर उठाया. वह एक विस्तीर्ण तालाब के किनारे से गुज़र रहा था, जिससे एक नदी निकलकर दूर पहाड़ियों में गुम हो गई थी, एक पहाड़ी पर घना हरा वन था, जिसमें से एक विशाल पाषाण निर्मित घर का गुम्बज़ झाँक रहा था, दूसरी पर था पंचकोणी गिरिजाघर और प्राचीन घण्टाघर, निकट ही बिखरी थीं झोंपड़ियाँ – अपनी बागडों और कुँओं सहित. दुब्रोव्स्की ने इन स्थानों को पहचाना, उसे याद आया कि इन्हीं पहाड़ियों पर वह नन्हीं माशा त्रोएकूरवा के संग खेला करता था, जो उससे दो वर्ष छोटी थी और तभी से सुंदर लगती थी. उसने अन्तोन से उसके बारे में जानना चाहा, मगर संकोचवश रुक गया.

ज़मीन्दार के घर के निकट जाने पर उसे उद्यान के पेड़ों के बीच से झलकती सफ़ेद पोषाक दिखाई दी. इसी समय अंतोन ने घोड़ों को चाबुक मारी और गाड़ीवानों तथा कोचवानों वाली स्वाभाविक अकड़ के साथ पूरी रफ़्तार से पुल पार करके गाँव के सामने से गुज़र गया. गाँव से बाहर आने पर वे पहाड़ी पर चले, और व्लादीमिर ने देखा बर्च के वृक्षों का वन और दाहिनी ओर खुले स्थान पर लाल छतवाला छोटा-सा भूरा मकान; उसका दिल उछलने लगा, वो अपने सामने देख रहा था किस्तेनेव्को और अपने पिता का साधारण-सा घर.

दस मिनट बाद वह ज़मींदार वाले आँगन में प्रविष्ट हुआ. उसने अवर्णनीय बेचैनी से अपने चारों ओर नज़र दौड़ाई. बारह वर्षों तक उसने अपनी मातृभूमि को नहीं देखा था. बर्च के वृक्ष, जो उसके सामने बाड़ के निकट लगाए ही गए थे, अब ऊँचे घने वृक्ष बन चुके थे. कभी तीन ख़ूबसूरत क्यारियों से सुसज्जित वह आँगन, जिनके मध्य से होकर चौड़ा, साफ़-सुथरा रास्ता जाता था, अब घास-फूस के चरागाह में परिवर्तित हो चुका था, जहाँ खूंटे से बंधा हुआ घोड़ा चर रहा था. कुत्ते भौंकने ही वाले थे, मगर अन्तोन को पहचानकर चुप रह गए और अपनी रोएँदार पूँछे हिलाने लगे. झोंपड़ियों से निकलकर बंधुआ मज़दूर बंधुआ मज़दूर बाहर आए और ख़ुशी से चिल्लाते हुए उन्होंने अपने नौजवान मालिक को घेर लिया. उनके घेरे को तोड़कर वह बड़ी मुश्किल से बाहर निकला और जीर्ण-शीर्ण द्वार की ओर भागा, ड्योढ़ी में ही उसका स्वागत ईगरोव्ना ने किया, जिसने रोते हुए अपने पाल्य को आलिंगन में भर लिया. “नमस्ते, नमस्ते, आया माँ” वह दुहराता रहा और अपनी भली बुढ़िया आया के सीने से चिपके हुए पूछा, “कैसे हैं पिता जी? कहाँ हैं वे?”

इसी क्षण मेहमानखाने में मुश्किल से पैर बढ़ाते हुए, ऊँचे कद का पीतवर्ण और कृश बूढ़ा, गाऊन और टोपी पहने प्रविष्ट हुआ.

“नमस्ते, वलोद्का!” उसने क्षीण आवाज़ में कहा और व्लादीमिर ने आवेग से अपने पिता को बाँहों में भर लिया. प्रसन्नता ने मरीज़ को झकझोर दिया, वह एकदम निढ़ाल हो गया, उसके पैर थरथराने लगे, और, वह गिर ही पड़ता यदि बेटे ने उसे थाम न लिया होता.

“तुम बिस्तर से उठे ही क्यों?” ईगरोव्ना उससे बोली, “पैरों में ताकत नहीं है, मगर वहीं घुसे चले आते हो जहाँ लोग होते हैं!”

बूढ़े को शयन-कक्ष में ले जाया गया. उसने बेटे के साथ बातचीत करने की कोशिश की, मगर विचारों का जमघट उसके दिमाग को हैरान किए दे रहा था और शब्द, बिना किसी तारतम्य के निकले पड़ रहे थे. वह एकदम चुप हो गया और बेहोशी के आलम में खो गया. व्लादीमिर उसकी हालत देखर सकते में आ गया. वह उसके शयन-कक्ष में ही रुक गया और उसने लोगों से प्रार्थना की, कि उसे पिता के साथ अकेले छोड़ दिया जाए, घर के नौकरों ने माफ़ी मांगी और तब सभी ने ग्रीशा को घेर लिया, उसे मेहमानखाने में खींच लाए, जहाँ ग्रामीण तरीके से, यथासंभव प्रसन्नता से उसका स्वागत किया गया और उसे अभिवादनों और सवालों से हैरान कर दिया.

Saturday, 4 August 2018

दुब्रोव्स्की - 02





अध्याय – 02


शहर में आकर अन्द्रेइ गव्रीलविच अपने एक परिचित व्यापारी के यहाँ रुका, वहाँ रात बिताकर सुबह जिले की अदालत पहुँचा. किसी ने भी उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. उसके पीछे-पीछे ही किरीला पेत्रोविच भी आया. मुंशी कानों में कलम फँसाए उठकर खड़े हो गए. अदालत के सभी सदस्य उससे बड़े तपाक से मिले, उसके पद, आयु एवम् डील-डौल का सम्मान करते हुए उसके लिए कुर्सियाँ पेश की गईं; वह खुले दरवाज़े के निकट बैठा – अन्द्रेइ गव्रीलविच दीवार का सहारा लेकर खड़ा था, तभी सचिव ने खनखनाती आवाज़ में अदालत का फ़ैसला पढ़ना शुरू किया.

यहाँ हम उसका सारांश दे रहे हैं. शायद आपको यह जानने में दिलचस्पी हो कि कानूनन किसी सम्पत्ति का स्वामी होने पर भी रूस में किसी को उससे किस तरह बेदखल किया जाता है.
सन् 18...के अक्टूबर माह की 27 तारीख को जिला अदालत ने पाया, कि सेना के लेफ़्टिनेन्ट अन्द्रेइ गव्रीलविच वल्द दुब्रोव्स्की द्वारा जनरल किरीला पेत्रोविच वल्द त्रोएकूरव की सम्पत्ति पर, जो ...प्रान्त के किस्तेनेव्को गाँव में है, …पुरुष कृषिदासों और खेतों एवम् खलिहानों वाली ...एकड़ भूमि पर ग़ैर कानूनी तरीके से कब्ज़ा कर लिया गया...

सारांश यह था कि किरीला पेत्रोविच के पिता स्वर्गीय प्योत्र एफ़ीमव ने यह सम्पत्ति 14 अगस्त 17को फ़ादेय ईगरोव स्पीत्सिन से खरीदी थी. किरीला पेत्रोविच किशोरावस्था से ही फ़ौजी सेवा में होने के कारण अक्सर युद्धों पर जाया करता. इसलिए उसे अपने पिता की मृत्यु के बारे में और उनके द्वारा छोड़ी गई सम्पत्ति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. और अब, सेना से निवृत्त होकर अपनी जागीर में लौटने पर उसे इस बात का ज्ञान हुआ, कि उसकी तमाम सम्पत्ति में से किस्तेनेव्को पर ज़मींदार दुब्रोव्स्की का अधिकार है. किस्तेनेव्को की ख़रीद-फ़रोख़्त से संबंधित कोई दस्तावेज़ न तो किरीला पेत्रोविच के पास है, और न ही अन्द्रेइ गव्रीलविच के पास. अतः अन्द्रेइ गव्रीलविच यह सिद्ध नहीं कर सकते कि उनके पिता को यह सम्पत्ति ईगर एफ़ीमव त्रोएकूरव द्वारा बेची गई थी.

अतः अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची, कि किस्तेनेव्को की जागीर पर अन्द्रेइ गव्रीलविच गैर कानूनी ढंग से कब्ज़ा जमाए हुए है. अदालत अन्द्रेइ गव्रीलविच को यह आदेश देती है कि वह किरीला पेत्रोविच को उसकी जागीर खेतों-खलिहानों समेत, तालाबों-पोखरों समेत, वनों-रास्तों समेत, कृषिदासों एवम् अन्य आबादी समेत और ज़मींदार के आवास समेत वापस लौटा दे.

सचिव ख़ामोश हो गया, ग्राम प्रमुख उठा और झुककर अभिवादन करते हुए उसने त्रोएकूरव को आदेश वाले दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने को कहा और त्रोएकूरव ने विजयोन्माद से झूमते हुए उसके हाथ से कलम ली और अदालत के आदेश पर प्रसन्नता जताते हुए दस्तख़त कर दिए.

अब बारी थी दुब्रोव्स्की की. सचिव उसके पास दस्तावेज़ ले गया. मगर दुब्रोव्स्की सिर झुकाए निश्चल खड़ा रहा.

सचिव ने उससे दुबारा हस्ताक्षर करते हुए अपनी पूर्ण सहमति अथवा संपूर्ण असहमति दर्शाने की प्रार्थना की. यदि उसकी अंतरात्मा यह कहती है, कि उसका पक्ष सही है और वह कानूनन तय की गई समयावधि के भीतर ऊपरी अदालत में मामले पर पुनर्विचार की प्रार्थना करना चाहे तो अपनी असहमति दर्शाए. दुब्रोव्स्की ख़ामोश ही रहा...अचानक उसने सिर उठाया, उसकी आँखें चमक रही थीं, उसने पैर पटकते हुए सचिव को इतनी ज़ोर से धक्का दिया कि वह गिर पड़ा, और, स्याही की दवात उठाकर ग्राम प्रमुख के मुँह पर दे मारी. सभी सकते में आ गए.

“मजाल तो देखो! ईश्वर के गिरजे का भी लिहाज नहीं! भाग जाओ, गुण्डों की जमात!”

फिर वह किरीला पेत्रोविच से मुख़ातिब होते हुए बोला, “सुन लिया फ़ैसला, हुज़ूरे आला,” वह कहता गया, “कुत्तों के नौकर कुत्तों को गिरजाघर के अंदर ले आए हैं! कुत्ते दौड़ रहे हैं ईश्वर के गिरजे में! मैं तुम्हें सिखाऊँगा...”

शोर सुनकर संतरी भागे-भागे आए और बड़ी मुश्किल से उस पर काबू पा सके. उसे ज़बर्दस्ती ले जाकर गाड़ी में बिठा दिया गया. त्रोएकूरव उसके पीछे-पीछे ही बाहर निकला, सभी न्यायाधीशों से घिरा हुआ. दुब्रोव्स्की के अचानक पागल हो जाने का उस पर गहरा असर हुआ था और उसकी सारी ख़ुशी रफ़ू-चक्कर हो गई.

उससे धन्यवाद और मेहेरबानियों की आशा रखने वाले न्यायाधीशों को उससे अभिवादन का एक शब्द भी नहीं मिला. वह उसी दिन पक्रोव्स्कोए चला गया.

इस दौरान दुब्रोव्स्की बिस्तर पर पड़ा रहा, जिले के डॉक्टर ने, जो सौभाग्यवश नौसिखिया नहीं था, उसे खून चढ़ाया. शाम तक उसकी तबियत काफ़ी संभल गई, मरीज़ सामान्य हो गया. दूसरे दिन उसे किस्तेनेव्को ले जाया गया, जो अब उसका नहीं था.

Sunday, 29 July 2018

दुब्रोव्स्की - 01




दुब्रोव्स्की

अनुवाद : आ. चारुमति रामदास 


प्रथम भाग

अध्याय -1



कई साल पहले अपनी अनेक जागीरों में से एक में पुराना ख़ानदानी रूसी ज़मींदार किरीला पेत्रोविच त्रोएकूरव रहता था. उसकी रईसी, ख़ानदान एवम् संबन्धों के कारण उन प्रांतों में, जहाँ उसकी जागीर थी, उसे बड़ा मान प्राप्त था, उसका काफ़ी वज़न था. पड़ोसी उसकी छोटी-छोटी सनकी इच्छाओं को पूरा करके आनंदित होते, प्रांतीय कर्मचारी उसके नाम से थरथर काँपते, किरीला पेत्रोविच इस भयमिश्रित आदर को यूँ स्वीकार करता मानो वह उसका हकदार हो. उसका घर मेहमानों से हमेशा भरा रहता था. वे उसके शोरगुल और धमाचौकड़ी के आयोजनों में भाग लेकर उसके ज़मींदारी दिखावे और अहम् की तुष्टि करने के लिए तत्पर रहते थे. उसके निमंत्रण को अस्वीकार करने और मेहमानों के लिए नियत दिनों में आदरपूर्वक पक्रोव्स्कोए गाँव में न आने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था. जहाँ तक घर-गृहस्थी का सवाल है, तो किरीला पेत्रोविच में वे सभी बुराइयाँ थीं, जो एक अनपढ़ आदमी में होती हैं. अपने चारों ओर की सभी चीज़ों से सिर चढ़ा हुआ, वह अपनी सीमित बुद्धि से उपजी सभी वाहियात एवम् आततायी सनकों को खुली छूट देता था, किसी भी कीमत पर उन्हें पूरा करता था. अपनी सीमित शारीरिक शक्ति के बावजूद सप्ताह में दो बार वह अपने पेटूपन के कारण कष्ट पाता और हर शाम नशा करता. उसके घर के एक हिस्से में सोलह नौकरानियाँ रहा करतीं, जो हाथों से की जाने वाली कारीगरी में व्यस्त रहतीं. इस हिस्से की खिड़कियाँ लकड़ी की जाली से बंद की गई थीं, दरवाज़ों पर ताले थे. जिनकी चाभियाँ किरीला पेत्रोविच के पास रहती थीं. ये युवा कृषिदासियाँ नियत समय पर उद्यान में घूमने निकलतीं, दो बुढ़ियों की देखरेख में. समय-समय पर किरीला पेत्रोविच उनमें से कुछ की शादी करवा देता और बंधकों से वह सख़्ती से और मनमाने ढंग से पेश आता, इसके बावजूद वे उसके प्रति वफ़ादार थे, उन्हें अपने मालिक की सम्पन्नता और प्रसिद्धि पर गर्व था और उसकी छत्रछाया का लाभ उठाते हुए वे अपने पड़ोसियों से मनमाना बर्ताव करते.

त्रोएकूरव के हमेशा के शग़ल थे: अपनी विशाल जागीर की सैर, लम्बे समय तक चलने वाले प्रीतिभोज और नित नई सोची गई शरारत जिनका शिकार अक्सर कोई नव परिचित हुआ करता, हालाँकि पुराने मित्र भी कभी-कभार उनकी चपेट में आ जाते, सिर्फ एक अन्द्रेइ गव्रीलविच दुब्रोव्स्की को छोड़कर. यह दुब्रोव्स्की – सेना का सेवा निवृत्त लेफ्टिनेन्ट उसका निकटतम पड़ोसी था और सत्तर कृषिदासों का स्वामी था. त्रोएकूरव जो ऊँचे से ऊँचे ओहदेवाले व्यक्तियों के साथ भी उद्दण्डता का व्यवहार करता था, दुब्रोव्स्की की, उसकी साधारण परिस्थिति के बावजूद, इज़्ज़त करता था. वे कभी सेना में एक-दूसरे के सहयोगी रह चुके थे, और त्रोएकूरव उसके दृढ़निश्चयी एवम् उतावले स्वभाव से भली भाँति परिचित था. परिस्थितिवश वे कुछ समय के लिए एक-दूसरे से दूर हो गए थे. परेशानियों के कारण दुब्रोव्स्की को सेवा से निवृत्त होकर अपने पिछड़े हुए गाँव में बसना पड़ा था. इस बारे में जानकर किरीला पेत्रोविच ने उसे अपने संरक्षण में रहने की पेशकश की, मगर दुब्रोव्स्की उसे धन्यवाद देकर निर्धन एवम् स्वावलम्बी बना रहा. कुछ वर्षों बाद त्रोएकूरव - सेवानिवृत्त जनरल, अपनी जागीर में आया, वे दोनों एक-दूसरे से मिलकर बड़े प्रसन्न हुए. तब से वे हर रोज़ साथ-साथ रहते और किरीला पेत्रोविच, जो कभी किसी के घर नहीं जाता था, यूँ ही अपने पुराने मित्र के घर अक्सर चला जाता. हम उम्र और समाज के एक ही वर्ग में पले बढ़े होने के कारण वे स्वभाव एवम् रुचियों में भी एक दूसरे के काफ़ी निकट थे. कई बातों में उनका भाग्य भी एक-सा था. दोनों ने प्रेम-विवाह किया था, दोनों की पत्नियाँ शीघ्र ही परलोक सिधार गई थीं, दोनों के ही एक-एक संतान थी. दुब्रोव्स्की का बेटा पीटर्सबुर्ग में पढ़ रहा था, किरीला पेत्रोविच की बेटी पिता की आँखों के सामने ही बड़ी हो रही थी. त्रोएकूरव दुब्रोव्स्की से अक्सर कहा करता, “सुन, भाई, अन्द्रेइ गव्रीलविच, अगर तेरा वलोद्का सही राह पर निकल गया, तो अपनी माशा को उससे ब्याह दूँगा, चाहे वह निर्धन ही क्यों न हो.” अन्द्रेइ गव्रीलविच सिर हिलाते हुए कहता, “नहीं, किरीला पेत्रोविच, वलोद्का मारिया किरीलव्ना का दूल्हा नहीं है. उस जैसे निर्धन ज़मींदार के लिए ग़रीब कुलीना से शादी करना और अपने घर का मुखिया बने रहना ही उचित है, बजाय इसके कि लाड़-प्यार में बढ़ी औरत का गुलाम बने.” उद्दण्ड त्रोएकूरव एवम् उसके गरीब पड़ोसी की मित्रता से सभी जलते थे और उसकी निर्भीकता पर अचरज भी करते, जब वह किरीला पेत्रोविच के यहाँ खाने की मेज़ पर बैठकर दो टूक अपनी राय देता था, बगैर यह सोचने की तकलीफ़ किए कि कहीं वह मेज़बान की राय का विरोध तो नहीं कर रहा है. कुछ लोग उसकी नकल करने की कोशिश करते और सम्मान की अपेक्षित सीमा से बाहर निकलने की कोशिश करते, मगर किरीला पेत्रोविच ने उन्हें इतना डरा रखा था, कि वे फिर कभी इस तरह की हरकत करने की हिम्मत नहीं कर पाए, और दुब्रोव्स्की अकेला ही सभी नियमों से ऊपर बना रहा. मगर अचानक एक घटना ने सब कुछ खत्म कर दिया.               

एक बार शिशिर के आरंभ में किरीला पेत्रोविच शिकार को निकला. शिकारी कुत्तों की देखभाल करने वाले नौकरों और साईसों को एक दिन पहले ही प्रातः पाँच बजे तैयार रहने की आज्ञा दे दी गई थी. तम्बू और रसोई का सामान पहले ही उस स्थान पर भेज दिए गए थे जहाँ किरीला पेत्रोविच को भोजन करना था. मेहमान और मेज़बान शिकारी कुत्तोंवाले श्वानगृह में गए, जहाँ पाँच सौ से अधिक फुर्तीले शिकारी कुत्ते अपनी कुत्तों की भाषा में किरीला पेत्रोविच की दानशीलता के गुण गाते हुए बड़े आराम से रह रहे थे. वहीं, सेना के डॉक्टर तिमोश्का की देखरेख में, बीमार कुत्तों के लिए अस्पताल भी था और साथ ही एक अलग दालान था, जहाँ कुत्तियाँ पिल्ले जनतीं और उन्हें दूध पिलातीं. किरीला पेत्रोविच को इस सुंदर कुत्ताघर पर गर्व था और वह अपने मेहमानों के सामने इसके बारे में डींग मारने से नहीं चूकता था, जिनमें से हर किसी ने कम-से-कम बीस बार उसे देख लिया था. अपने मेहमानों से घिरा हुआ, वह इस श्वानगृह में घूम रहा था, साथ में थे तिमोश्का एवम् अन्य कर्मचारी; अनेक छोटे श्वानगृहों के सामने रुककर बीमारों के स्वास्थ्य के बारे में पूछता, सख़्त एवम् स्पष्ट निर्देश देता, परिचित कुत्तों को अपने पास बुलाता और प्यार से उनसे बातें करता. मेहमानों ने किरीला पेत्रोविच के श्वानगृह की तारीफ़ करना अपना कर्तव्य समझा. केवल दुब्रोव्स्की चुप था और नाक-भौं सिकोड़ रहा था. वह बढ़िया शिकारी था. उसकी परिस्थिति उसे केवल दो जोड़ी शिकारी और एक जोड़ी पीछा करने वाले कुत्तों को पालने की इजाज़त देती थी, इस शानदार कुत्ताघर को देखकर वह बड़ी कठिनाई से अपनी ईर्ष्या पर काबू पा रहा था. “मुँह क्यों बना रहे हो, भई”, किरीला पेत्रोविच ने उससे पूछा, “या मेरा श्वानगृह तुम्हें पसंद नहीं आया?”

“नहीं,” उसने गंभीरता से उत्तर दिया, “श्वानगृह तो लाजवाब है, मगर तुम्हारे लोगों को तुम्हारे कुत्तों जैसा घर मुश्किल से ही मिलता होगा.”

कुत्तों की देखभाल करने वाले एक नौकर को गुस्सा आ गया, “हम अपने घरों में रहते हैं”, उसने कहा, “और ईश्वर तथा मालिक की कृपा से हमें कोई शिकायत नहीं है, मगर जो सच है, वो सच है, किसी-किसी ज़मींदार को तो इनमें से किसी भी छोटे श्वानगृह से अपना घर बदलना ठीक रहेगा. उसे यहाँ ज़्यादा आराम भी मिलेगा और खाना भी.” किरीला पेत्रोविच अपने नौकर की धृष्ठ टिप्पणी पर ज़ोर से ठहाका मारकर हँस पड़ा, मेहमान भी साथ-साथ हँसने लगे, हालाँकि वे यह भी महसूस कर रहे थे, कि नौकर का मज़ाक उन पर भी लागू होता है. दुब्रोव्स्की का मुख विवर्ण हो गया और वह एक भी शब्द नहीं बोला. इसी समय एक टोकरी में कुछ नवजात पिल्ले किरीला पेत्रोविच के पास लाए गए, वह उनमें व्यस्त हो गया, उनमें से दो को अपने लिए चुनकर, बाकी पिल्लों को गर्माने के लिए भेज दिया. इस बीच अन्द्रेइ गव्रीलविच कहीं छिप गया और किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं गया.

मेहमानों के साथ श्वानगृह से लौटने के बाद किरीला पेत्रोविच भोजन के लिए बैठा, और तभी दुब्रोव्स्की को न देखकर उसके बारे में पूछने लगा. लोगों ने जवाब दिया कि अन्द्रेइ गव्रीलविच घर चले गए. त्रोएकूरव ने फ़ौरन पीछा करके उसे वापस लौटा लाने की आज्ञा दी. आज तक वह अनुभवी और कुत्तों के गुणों को परखने वाले, शिकार से संबंधित सभी संभावित विवादों को अचूक सुलझाने वाले दुब्रोव्स्की के बिना शिकार पर नहीं निकला था. उसके पीछे जो नौकर घोड़ा भगाते हुए गया था वह वापस लौटा. मेज़ पर अभी तक उसका इंतज़ार हो रहा था. नौकर ने बताया, कि अन्द्रेइ गव्रीलविच नहीं माने और वे वापस लौटना नहीं चाहते. अपनी आदत के मुताबिक शराब से उत्तेजित, किरीला पेत्रोविच को क्रोध आ गया और उसने दुबारा उसी नौकर को संदेश देकर भेजा, कि यदि वह पक्रोव्स्कोए में रात बिताने नहीं आया तो वह, यानी त्रोएकूरव, उससे हमेशा के लिए रूठ जाएगा. नौकर फिर घोड़ा दौड़ाते हुए गया, किरीला पेत्रोविच मेज़ से उठ गया, मेहमानों से बिदा ली और सोने चला गया.

दूसरे दिन उठते ही, पहला प्रश्न था, अन्द्रेइ गव्रीलविच यहाँ हैं? जवाब के बदले उसे तिकोना ख़त दिया गया, किरीला पेत्रोविच ने अपने सचिव को उसे ज़ोर से पढ़ने के लिए कहा और यह सुना:

“मेरे प्यारे दोस्त,

मैं तब तक पक्रोव्स्कोए नहीं आऊँगा, जब तक तुम कुत्तों के नौकर परामूश्का को माफ़ी माँगने के लिए मेरे पास नहीं भेजोगे, और यह मेरी मर्ज़ी होगी, कि मैं उसे माफ़ करूँ या सज़ा दूँ, और मैं तुम्हारे नौकरों के मज़ाक बर्दाश्त नहीं करूँगा, हाँ, और तुम्हारे मज़ाक भी मुझसे सहे न जाएँगे, क्योंकि मैं विदूषक नहीं, बल्कि ख़ानदानी ज़मींदार हूँ. आपकी सेवा के लिए सदैव तत्पर,
अन्द्रेइ दुब्रोव्स्की.”

शिष्ठाचार के मापदण्डों के लिहाज़ से देखा जाए, तो यह पत्र अत्यंत अशिष्ठतापूर्ण था, मगर किरीला पेत्रोविच को उसके अंदाज़ से नहीं, बल्कि उसमें छिपे संदेश से गुस्सा आ गया. “क्या!” नंगे पैर बिस्तर से उछलते हुए त्रोएकूरव दहाड़ा, “अपने लोगों को उसके पास क्षमा माँगने भेजूँ, और वह अपनी मर्ज़ी से उन्हें सज़ा देगा या माफ़ करेगा! क्या, सोच क्या रहा है वो, क्या उसे मालूम नहीं कि किससे पाला पड़ा है? मैं उसे...रोता हुआ मेरे पास आएगा, मालूम पड़ेगा उसे कि त्रोएकूरव से दुश्मनी मोल लेने का क्या नतीजा होता है!”

किरीला पेत्रोविच तैयार होकर हमेशा के तामझाम के साथ शिकार को निकला, मगर शिकार न मिला. दिनभर में केवल एक ख़रगोश ही दिखाई दिया और वह भी फ़िसल गया. तम्बू में खाना भी ठीक से नहीं बना था, या यूँ कहिए कि किरीला पेत्रोविच की पसंद का नहीं बना था. उसने रसोइये को पीटा, मेहमानों को गालियाँ दीं और वापसी में अपने पूरे तामझाम के साथ दुब्रोव्स्की के खेतों से होकर लौटा.

कुछ दिन बीते, मगर दोनों पड़ोसियों के बीच की दुश्मनी कम न हुई. अन्द्रेइ गव्रीलविच पक्रोव्स्कोए नहीं लौटा – किरीला पेत्रोविच का उसके बगैर दिल नहीं लगता था, उसका यह दुख अनेक अत्यन्त अपमानास्पद वाक्यों में प्रकट होता, जो स्थानीय कुलीनों की मेहेरबानी से नमक-मिर्च के साथ दुब्रोव्स्की तक पहुँच जाते. एक नई घटना ने समझौते की रही-सही उम्मीद पर भी पानी फेर दिया.

एक बार दुब्रोव्स्की अपनी छोटी-सी जागीर का चक्कर लगा रहा था, चर्च के वन के निकट आने पर उसने कुल्हाड़ियों की आवाज़ें सुनीं और एक ही मिनट बाद सुनी गिरते हुए पेड़ की चरमराहट. वह शीघ्रतापूर्वक वन में घुसा और पक्रोव्स्कोए के आदमियों पर टूट पड़ा जो चुपचाप उसके पेड़ों को काटकर ले जा रहे थे. उसे देखते ही वे भागने लगे. दुब्रोव्स्की ने अपेन कोचवान के साथ उनमें से दो को पकड़ लिया और उनके हाथ-पैर बांधकर अपने आँगन में ले आया. दुश्मन के तीन घोड़े भी विजेता को प्राप्त हुए. दुब्रोव्स्की को वास्तव में बहुत गुस्सा आया, इससे पहले त्रोएकूरव के आदमियों ने, जो जाने-माने लुटेरे ही थे, कभी भी उसकी जागीर में घुसने की हिम्मत नहीं की थी, क्योंकि उन्हें अपने मालिक के साथ उसके मित्रतापूर्ण संबंधों की जानकारी थी. दुब्रोव्स्की देख रहा था कि अब उन्होंने उनमें पड़ चुकी फूट का लाभ उठाया है, और उसने, युद्ध के सभी नियमों को ताक पर रखकर, उन्हें उन्हीं टहनियों से मारकर सबक सिखाने का निश्चय किया जिन्हें उन्होंने उसके वन से चुराया था, घोड़ों को अपने अस्तबल में शामिल करके काम पर भेज दिया.              

इस घटना की ख़बर उसी दिन किरीला पेत्रोविच तक पहुँच गई. वह आपे से बाहर हो गया और आवेश में आकर अपने सभी सेवकों के साथ किस्तेनेव्को पर (उसके पड़ोसी के गाँव का यही नाम था) हमला बोलकर उसे नष्ट करके ज़मींदार को उसी के घर में कैद करने पर उतारू हो गया. ऐसे अभियानों को वह अशिष्ट, अभद्र नहीं मानता था. मगर शीघ्र ही उसके विचारों ने एक नया मोड़ ले लिया.

भारी कदमों से हॉल में चहलकदमी करते हुए उसकी नज़र खिड़की पर पड़ी और उसने प्रवेशद्वार के पास एक त्रोयका को रुकते हुए देखा; चमड़े की टोपी और रोएँदार ओवरकोट पहने एक नाटा आदमी गाड़ी से उतरकर व्यवस्थापक के पास गया, त्रोएकूरव ने ग्रामप्रमुख शबाश्किन को पहचाना और उसे अंदर बुलाने की आज्ञा दी. एक मिनट बाद शबाश्किन झुक-झुककर सलाम करते हुए और आज्ञा की प्रतीक्षा करते हुए त्रोएकूरव के सामने खड़ा था.

“ख़ुश रहो, क्या नाम है तुम्हारा,” त्रोएकूरव ने उससे कहा, “कैसे आए?”

“मैं शहर जा रहा था, हुज़ूर”, शबाश्किन ने जवाब दिया, और जाते-जाते इवान दिम्यानोव की ओर झाँक लिया, कि हुज़ूर का कोई हुक्म तो नहीं है.”

“बिल्कुल मौके पर आए हो, क्या नाम है तुम्हारा, मुझे तुमसे काम है. वोद्का पियो और सुनो.”

इतने मीठे स्वागत ने ग्रामप्रमुख को सुखद आश्चर्य में डाल दिया. उसने वोद्का पीने से इनकार कर दिया और यथासंभव एकाग्रता से किरीला पेत्रोविच की बात सुनने लगा.

“मेरा पड़ोसी”, त्रोएकूरव ने कहा, “छोटा-सा धृष्ठ ज़मींदार है, मुझे उसकी जागीर हथियानी है, तुम इस बारे में क्या सोचते हो?”

“हुज़ूर, अगर कोई दस्तावेज़ हो, या...”

“झूठ बोलते हो, भाई, कहाँ के दस्तावेज़ चाहिए तुम्हें! यही तो बात है. मज़ा तो इसी में है, कि बगैर किसी हक के जागीर छीन ली जाए. रुको, ठहरो, यह जागीर कभी हमारी हुआ करती थी, किसी स्पीत्सिन से ख़रीदी थी और फिर दुब्रोव्स्की के पिता को बेच दी थी. क्या इसी को आधार नहीं बनाया जा सकता?”

“अक्लमन्दी की बात करते हैं, हुज़ूर, शायद यह ख़रीद-फ़रोख़्त कानूनी तरीके से हुई होगी.”

“सोचो, भाई, ठीक से कोई बात ढूँढ़ो.”

“अगर, मिसाल के तौर पर, हुज़ूर अपने पड़ोसी से वह दस्तावेज़ हासिल कर लें, जिसकी बिना पर वह इस जागीर पर अपना हक जताते हैं, तो बेशक...”

“समझता हूँ, मगर यही दुर्भाग्य है,” उसके सारे कागज़ात आग में जल गए.”

“क्या फ़रमाते हैं, हुज़ूर, कागज़ात आग में जल गए! इससे बेहतर और क्या हो सकता है? तो, इस सूरत में, मुझे कानूनन हरकत में आने की इजाज़त दीजिए और बगैर किसी शको-शुबहे के आपको मुकम्मिल ख़ुशी हासिल हो जाएगी.”

“क्या तुम ऐसा सोचते हो? देख लो. मैं तुम्हारी कोशिशों पर निर्भर रहूँगा, और तुम मेरी मेहेरबानियों के बारे में निश्चिंत रहो.”

शबाश्किन ने ज़मीन तक झुककर सलाम किया, बाहर निकला और उसी दिन से सोची-समझी योजना पर अमल करने लगा, और उसकी फ़ुर्ती की बदौलत, ठीक दो हफ़्ते बाद दुब्रोव्स्की को शहर से सरकारी ख़त मिला, जिसमें किस्तेनेव्को स्थित जागीर के बारे में कैफ़ियत देने के लिए उसे बुलाया गया था.

इस अप्रत्याशित पूछताछ से अन्द्रेइ गव्रीलविच भौंचक्का रह गया और उसने उसी दिन एक अभद्रतापूर्ण पत्र लिखा, जिसमें उसने घोषणा की, कि किस्तेनेव्को गाँव उसे अपने स्वर्गीय पिता की मृत्यु के बाद विरासत में मिला है, विरासत के कानून के मुताबिक वह इसका स्वामी है और त्रोएकूरव को इससे कुछ लेना-देना नहीं है और उसकी जागीर पर गैरों द्वारा हक जताने की कोशिश करना सरासर गुंडागर्दी है.

इस पत्र से शबाश्किन मन-ही-मन बहुत ख़ुश हुआ. उसने भाँप लिया कि दुब्रोव्स्की को कानून का बहुत कम ज्ञान है और यह भी, कि उस जैसे क्रोधी स्वभाव के एवम् लापरवाह व्यक्ति को मुश्किल में डालना बहुत आसान है.

अन्द्रेइ गव्रीलविच ने बड़ी बेदिली से ग्रामप्रमुख द्वारा पूछे गए प्रश्नों को देखा और उसका विस्तार से उत्तर देना आवश्यक समझा. उसने काफ़ी गंभीरतापूर्वक पत्र का उत्तर दिया, मगर कुछ समय बाद वह अपर्याप्त ही प्रतीत हुआ.

मुकदमा लम्बा खिंचने लगा. अपनी सच्चाई में विश्वास होने के कारण अन्द्रेइ गव्रीलविच उसके बारे में अधिक परेशान नहीं हो रहा था, उसे न तो इसका चाव था, न ही इस पर फेंकने के लिए उसके पास पर्याप्त धन था, और हालाँकि वह हमेशा इस नकल-नवीस जमात की बिकने को तैयार अंतरात्मा का मज़ाक उड़ाया करता था, उसके दिमाग में कभी ये ख़याल भी नहीं आया था, कि वह एक दिन चुगलखोरी का शिकार बनेगा. अपनी ओर से त्रोएकूरव भी स्वयम् ही दायर किए गए मुकदमे पर अधिक ध्यान नहीं दे रहा था, शबाश्किन ही उसकी ओर से भागदौड़ कर रहा था, उसके नाम से कार्य कर रहा था, जजों को धमकाता, ख़रीदता, कानून को उलटा-सीधा तोड़ता-मरोड़ता. और फिर, 9 फरवरी 18...को दुब्रोव्स्की को शहर की पुलिस से पत्र मिला, जिसमें ज़ेम्स्की अदालत में हाज़िर होकर उसके, याने लेफ्टिनेन्ट दुब्रोव्स्की और जनरल त्रोएकूरव के बीच विवादास्पद जागीर के मुकदमे का फ़ैसला सुनने एवम् अपनी रज़ामन्दी अथवा नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए लिखा गया था. दुब्रोव्स्की उसी दिन शहर के लिए रवाना हुआ, रास्ते में त्रोएकूरव ने उसे पीछे छोड़ दिया. उन्होंने बड़े घमंड से एक-दूसरे की ओर देखा, और दुब्रोव्स्की को अपने प्रतिद्वंद्वी के चेहरे पर एक दुष्ट मुस्कान दिखाई दी.